विधि अग्निहोत्री, बेमेतरा। रायपुर बीरगांव की प्रेमिन अपने माता पिता, 2 भाई और 1 बहन के साथ गरीबी में गुज़ारा कर रही थी. 8 वीं तक की पढ़ाई के बाद स्कूल छूट गया और आर्थिक तंगी के चलते आगे कभी पढ़ नहीं सकी. 17 साल की छोटी उम्र में ही प्रेमिन की शादी दुर्ग के सुकाल से हो गई. माता पिता के आर्थिक हालात तो खराब थे ही, साथ ही शादी के बाद भी प्रेमिन को बुरे आर्थिक हालातों का सामना करना पड़ा. प्रेमिन का पति मजदूरी करता. मजदूरी से जितनी आमदनी होती, उससे दो वक्त की रोटी जुटा पाना भी मुश्किल था. लिहाजा प्रेमिन और उसके पति ने बेमेतरा जाकर काम करने का फैसला किया. अकेले पति के कमाने से घर नहीं चल पा रहा था. इधर गरीबी से परेशान प्रेमिन ने महिला स्वसहायता समूह से जुड़ने का फैसला किया. स्वसहायता समूह से जुड़ने पर प्रेमिन का आत्मविश्वास काफी बढ़ा.

बेमेतरा के विजय सिन्हा से प्रेमिन को ई- रिक्शा की जानकारी मिली. नगरपालिका की मदद से प्रेमिन को 1 लाख 65 हजार का ई-रिक्शा 50 हजार की छूट के साथ मिल गया. ई-रिक्शा मिलने पर प्रेमिन के सपनों को मानो पर लग गए. उसे इस बात की खुशी थी, कि अब परिवार का पेट पालने में उसे परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ेगा. लेकिन जितना मुश्किल रिक्शा मिलना नहीं था, उससे कहीं ज्यादा मुश्किल रिक्शा चलाना था. दरअसल जब-जब प्रेमिन रिक्शा लेकर निकलती गांव के लोग उसे रिक्शा चलाता देख ताने कसने लगते. उसके चरित्र पर उंगली उठाते और उसे रिक्शा नहीं चलाने की धमकी देते. लेकिन प्रेमिन भी कम साहसी नहीं थी. उसने भी लोगों के तानों और धमकियों से परेशान होने के बजाय अपना पूरा ध्यान अपने रोजगार पर रखा. रिक्शा चलाने से उनके आर्थिक हालात में थोड़ा सुधार हुआ.

प्रेमिन की बढ़ती आमदनी को देख पति को भी ई-रिक्शा चलाने के लिए प्रेरित किया और पति को भी ई-रिक्शा दिलाया. अब दोनों पति-पत्नी मिलकर ई-रिक्शा चलाते हैं. इससे परिवार आर्थिक रूप से मज़बूत हुआ है. प्रेमिन की एक सात साल की बेटी है. जिसे वो प्राइवेट स्कूल में पढ़ा रही हैं और अपनी बेटी को अच्छी से अच्छी शिक्षा देकर अपने पैरों पर खड़ा करना चाहती हैं. प्रेमिन का पति सुबह 8 बजे ई-रिक्शा लेकर निकल जाता है. तो प्रेमिन भी घर के काम जल्दी निपटाकर 9 बजे निकल जाती है. प्रेमिन अपनी बेटी को भी साथ लेकर जाती है, क्योंकि घर में बेटी की देख-रेख करने वाला कोई नहीं. 9 से 11 बजे तक बेटी को साथ लेकर रिक्शा चलाती है. फिर बेटी को घर ले जाकर  तैयार कर उसे स्कूल भेजती है. बेटी को स्कूल भेजकर घर का बचा हुआ काम निपटाकर 2 बजे बेटी को स्कूल से लेकर आती, उसे खाना खिला फिर साथ लेकर रिक्शा चलाने निकलती. इस तरह रोज संघर्ष कर 300 से 500 रूपये की आमदनी प्रतिदिन की हो जाती है. दोनों पति-पत्नी की आमदनी मिलाकर हर महिने करीब 15 हज़ार की आमदनी हो जाती है. यह परिवार अब पहले से ज्यादा आर्थिक रूप से सबल हुआ है.

प्रेमिन अब आत्मनिर्भर हैं वह बेमेतरा की पहली महिला ई-रिक्शा चालक है. प्रेमिन अपने जैसी कई महिलाओं के लिए प्रेरणा स्त्रोत है क्योंकि उसने अपनी सारी परेशानियों से लड़ते हुए खुद को और अपने पति को आर्थिक रूप से सशक्त बनाया है. साथ ही प्रेमिन कावेरी स्वसहायता समूह की अध्यक्ष भी हैं और गांव की अन्य महिलाओं को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रही है और कहती हैं कि ई-रिक्शा योजना ने उसके जीवन को पहले से बेहतर बनाया है.