अलंकार तिवारी, अंबिकापुर।  यूं ही कोई शख़्स सफलता के मुकाम तक नहीं पहुंच जाता. सफलता की कहानियां अक्सर संघर्षों के कई उतार-चढ़ाव से होकर गुजरती हैं तब जाकर कोई शख़्स दूसरों के लिए एक मिसाल एक उदाहरण बन पाता है. ऐसे बहुत से लोग हैं जो फर्श से लेकर अर्श तक की यात्रा करते हैं उनके जीवन की यही कहानियां लोगों के लिए एक प्रेरणा बन जाती है.

ऐसी ही एक कहानी अंबिकापुर के आदिवासी इसाई परिवार में जन्मे एक युवक धनेश एक्का की है. कभी एक साधारण से ठेले में काम करने वाला युवक आज अपनी मेहनत और इच्छा शक्ति के बदौलत डेढ़ लाख रुपए महीने की कमाई करने का सफर तय कर चुका है. उसकी सफलता की कहानी ऐसी है कि अब वह खुद का फूड चेन खोलने जा रहा है. यही नहीं अब वह इस मुकाम पर पहुंच चुका है कि वह लगभग दर्जन भर लोगों को रोजगार प्रदान कर रहा है.

सीखने के लिए बगैर पगार किया काम

मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मे धनेश के परिवार में उसके माता-पिता, तीन भाई और दो बहन हैं. पिता वन विभाग में रेंजर के पद पर कार्यरत थे और वे 2012 में सेवानिवृत्त हो चुके हैं. 12 वीं की पढ़ाई करने के बाद धनेश ने बाकी युवाओं की तरह डाक्टर, इंजीनियर नहीं बल्कि होटल व्यवसाय को अपना भविष्य बनाने के लिए चुना. इसके लिए उसने सबसे पहले सन 2000 में कलेक्ट्रेट के सामने चाइनीज फूड का ठेला लगाने वाले राजू भाई के यहां काम सीखने जाता था. जहां शुरुआत के 3-4 महीने वह प्लेट उठाना, सर्व करना जैसे काम उससे करवाए जाते थे. इस दौरान किस तरह चाइनीज फूड बनाए जाते हैं वह देखा करता था और आखरी में जो सामान बच जाता था उससे वह बनाने की कोशिश करता था. चार महीने बाद ठेला संचालक उसे अपने घर बुलाने लगा जहां उसे वह चाइनीज फूड बनाने के पहले की तैयारियां जिसे मिजा कहते हैं सीखता था. तकरीबन 8 महीने तक काम सीखने के बाद उसने खुद का केटरिंग का काम शुरु किया. तकरीबन सवा साल तक काम करके सवा लाख रुपए की उसने बचत की.

नेवी की नौकरी छोड़ा

अपने बचाए हुए पैसों से धनेश होटल मैनेजमेंट में डिप्लोमा करने सन 2004-05 में झारखंड के हजारीबाग स्थित होलीक्रास वोकेशनल ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट गया. जहां साल भर तक ट्रेनिंग लेने के पश्चात उसका अगला पड़ाव इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग का था, उसके लिए वह लोनावाला स्थित फाइव स्टार होटल फरियाद डिलक्स में 6 महीना रहा.

दोनों ट्रेनिंग करने के पश्चात धनेश 2006 से 2009 तक इंडियन नेवी के डीएफसी में शेफ के पद पर कार्य करने लगा. इस दौरान उसे 20 हजार रुपए के आस-पास वेतन मिलता था. लेकिन नेवी की नौकरी उसे रास नहीं आई और वह उसे छोड़ 2009 में बैंगलोर चला गया. जहां उसने फाइव स्टार होटल रॉयल आर्किड में नौकरी ज्वाइन की. उसे यहां 15 हजार रुपए की पेमेन्ट मिला करती थी.

फाइव स्टार होटल की नौकरी छोड़ शुरू किया खुद का काम

बैंग्लोर से भी काम छोड़ कर धनेश वापस छत्तीसगढ़ पहुंच गया. जहां उसने बिलासपुर के शिव टाकिज चौक में 32 हजार महीने के किराए पर एक जगह लिया. यहां वह अपने भाई, साला के साथ मिलकर खुद का कान्टिनेंटल फूड का होटल द चॉकलेट स्टोरी शुरु किया. उसने काम के लिए एक वर्कर को भी रखा था. देखते ही देखते उनका होटल अच्छे से चलने लगा. प्रतिदिन औसतन 3 हजार की कमाई होने लगी. महीने की 90 हजार की आमदनी से वह होटल का 32 हजार रुपए और बिजली बिल 20 से 25 हजार रुपए भरता था. पांच साल तक काम करने के बाद वह वापस अपने शहर अंबिकापुर आ गया. यहा उसे लाइवलीहु़ड कालेज के बारे में पता चला. यहां से उसने कुकिंग और हॉस्पिटैलिटी का प्रशिक्षण लिया.

फूड चैन खोलने की है योजना

प्रशिक्षण लेने के साथ ही धनेश ने सरकार की पीएमईजीपी योजना के तहत 10 लाख रुपए के लोन के लिए आवेदन किया. कुछ दिन बाद अक्टूबर 2017 में लोन का 9 लाख 80 हजार रुपए का लोन आबंटित हो गया. इस दौरान उसके सामने कई मुश्किलें भी आई. नगर निगम से उसने स्वरोजगार के लिए गुमटी आबंटन के लिए आवेदन किया. लेकिन पैसों की तंगी की वजह से कई दिक्कतों का सामना भी करना पड़ा. इस तरह उसने नगर निगम से मिली दुकानों में अपना खुद का ओलीवर कैफे तंदूर के नाम से होटल खोला. जहां उसके अलावा 9 और वर्करों को उसने काम पर रखा है. यहां से प्रतिदिन उसे औसतन 5 हजार रुपए की आमदनी हो जाती है. लोन की 12 हजार रुपए की किश्त, वर्करों का पेमेंट और बाकी खर्चों को काटने के बाद वह प्रति महीने 35 से 40 हजार रुपए अब कमा लेता है. इसके अलावा लाइवलीहुड कॉलेज में प्रशिक्षण लेने वाले युवकों को भी अपने यहां वह प्रशिक्षित करता है. हाल ही में सूरजपुर जिले में हुई संभागीय कुकिंग प्रतियोगिता में उसे पहला स्थान प्राप्त हुआ है.

धनेश का कहना है कि अब उसका सपना खुद का फूड चेन खोलने का है. जिसकी फ्रेंचाइजी के लिए कोरबा, पाली, विश्रामपुर और कुनकुरी के कुछ व्यवसाईयों से उसकी बातचीत चल रही है.