हरिओम श्रीवास, मस्तूरी/रायपुर। कैरियर बनाने के पीछे लोग गांव और खेती-बाड़ी छोड़कर शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं. वहीं कई युवा ऐसे भी हैं जो खेती-किसानी को ही अपना कैरियर बना कर लाखों रुपए कमा रहे हैं. ऐसे ही बिलासपुर जिले के लिमतरा गांव में रहने वाले श्रीवास परिवार ने रोजी-रोटी के लिए गांव से पलायन करने की बजाय अपनी थोड़ी सी जमीन में खेती कर हर साल लाखों रुपए की कमाई कर रहे हैं. जो कि उन लोगों के लिए एक मिसाल है जो खेती को निकृष्ट कार्य समझते हैं.
मस्तूरी ब्लॉक के लिमतरा गांव के रहने वाले धरम श्रीवास जब स्कूल की पढ़ाई कर रहे थे. उसी दौरान उनके सिर से पिता का साया उठ गया. पिता के निधन के बाद खेतों में काम करने के साथ ही अपनी पढ़ाई जारी रखी. उनके परिवार में तीन भाई, मां, पत्नी और बच्चे मिलाकर 14 लोग रहते हैं. इस संयुक्त परिवार की आय का मुख्य जरिया खेती किसानी ही है. परिवार के पास 5 एकड़ खेत है वह भी अलग-अलग जगह में जो कि खेती के लिए एक बड़ी चुनौती थी. शुरुआत में परिवार पारंपरिक धान की खेती किया करता था,लेकिन उसमें उन्हें ज्यादा मुनाफा नहीं हो पाता था, जिसकी वजह से परिवार का पालन पोषण करने में बड़ी कठिनाईयां सामने आने लगी.
बने मशरूम मैन
पढ़ाई के दौरान उन्हें मशरुम की खेती का पता लगा और वे इसके बारे में जानकारी लेने बिलासपुर के कृषि विज्ञान केन्द्र पहुंच गए. जहां कृषि वैज्ञानिकों ने उन्हें कम लागत और कम जगह में मशरूम की खेती करने की सलाह दी व इसका प्रशिक्षण भी दिया. प्रशिक्षण लेने के पश्चात धरम श्रीवास ने अपने खेत में 20×20 का कमरा बना कर उसमें मशरुम की खेती करने लगे. प्रतिदिन वे बड़े पैमाने पर मशरूम उगा कर उसे बाजार में बेचने लगे. देखते ही देखते उनकी पहचान गांव में मशरूम मैन के रुप में होने लगी. मशरूम से उन्हें अच्छा खासा मुनाफा होने लगा.
मशरूम की खेती के साथ ही उन्होंने पारंपरिक धान की खेती भी जारी रखी. पानी की कमी को देखते हुए सरकारी सहायता से अपने खेत में बोर कराया. इसके साथ ही खेत में 20×20 का एक छोटा सा तालाब बनाकर उसमें मछली पालन करने लगे, मतस्य विभाग की हेचरी से मछली स्पॉन लाकर अपने तालाब में लाकर छोड़ दिया करते थे. दो महीने में ही मछलियां बड़ी-बड़ी हो जाती थी. जिसे बाजार में बेच दिया करते थे. इससे भी उन्हें अच्छा खासा मुनाफा होने लगा.
नेट शेड और ड्रिप सिस्टम ने बदली किस्मत
इसी बीच बिलासपुर के कृषि विज्ञान केन्द्र के अधिकारियों से मुलाकात से उन्हें कई सब्सिडी सरकारी योजनाओं की जानकारी मिली. जिसके बाद उन्होंने उन योजनाओं का लाभ उठाना शुरु किया और अपने एक एकड़ खेत में ड्रिप सिस्टम लगाकर सिंचाई शुरु कर दी. ड्रिप सिस्टम लगाने उन्हें सरकार की ओर से 75 प्रतिशत सब्सिडी मिली और उन्होंने मात्र 25 हजार रुपए ही खर्च करना पड़ा. जिसके बाद उन्हें नेट शेड हाऊस की जानकारी लगी. उन्होंने सरकारी स्कीम के तहत अपने एक एकड़ खेत में नेट शेड हाऊस का निर्माण करा लिया. नेट शेड हाऊस की वजह से अंदर का तापमान संतुलित रहने लगा, कीट-पतंगों का भी हमला कम हो गया. उन्होंने नेट शेड हाऊस में सब्जी, भाजी और धनिया की खेती करने लगे.
सोलर ड्रायर ने घाटा किया शून्य
धरम ने बताया कि उन्होंने सरकारी सहायता से सोलर ड्रायर सिस्टम लगा लिया जिसके बाद जो मशरुम या सब्जी भाजी बच जाती है उसे फेंकने और खराब होने से बचाने के लिए वे ड्रायर से उन्हें सुखाकर उसकी पैंकिग कर लेते हैं. इसके अलावा उन्होंने शाकम्भरी योजना के तहत 50 प्रतिशत सब्सिडी से डीजल मोटर खऱीद लिया. जिसकी सहायता से वे अपने अन्य खेतों में पानी पहुंचाने के साथ ही जनरेटर के रूप में भी इस्तेमाल कर लेते हैं.
धरम श्रीवास का कहना है कि इन सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने के बाद वे अत्याधुनिक तरीके से खेती कर रहे हैं जिसकी वजह से उन्हें दोगुना से भी ज्यादा मुनाफा मिलने लगा. जहां पहले धान बेचकर उन्हें बमुश्किल 1 लाख रुपए की आमदनी होती थी उसमें भी लेबर और बीज इत्यादि का खर्चा काटने के बाद वह औऱ भी कम हो जाता था. लेकिन अब वे घर का सारा खर्चा काटने के बाद हर साल ढ़ाई से तीन लाख रुपए बचा लेते हैं. धरम श्रीवास की शिक्षाकर्मी में 2008 में नौकरी लगने के बाद उनका छोटा भाई खिलेश्वर खेती बाड़ी का सारा काम संभालता है वहीं सबसे बड़ा भाई का गांव में सेलून की दुकान है वे भी दुकान जाने से पहले उनकी मदद करते हैं वहीं धरम भी स्कूल जाने से पहले और आने के बाद खेती किसानी में लग जाते हैं. उनके अलावा घर की महिलाएं भी सारा दिन खेतों में हाथ बंटाती हैं.
महज 5 एकड़ खेत में उनके द्वारा की जा रही आधुनिक खेती और उससे होने वाली कमाई की चर्चा आस-पास के कई गांवों में होने लगी और वे युवाओं के लिए एक मिसाल बन गए. गांव के युवा अब नौकरी के लिए शहर जाने की बजाय गांव में ही खेती करना शरु कर दिए हैं. वहीं आस-पास के कई गांव के लोग सरकारी योजनाओं की जानकारी लेने जिला मुख्यालय पहुंचने लगे हैं वे भी धरम की तरह अत्याधुनिक खेती कर अपनी किस्मत बदलना चाहते हैं.