विधि अग्रनिहोत्री, रायपुर/ प्रमोद निर्मल, मानपुर। राजनांदगांव जिले के धुर नक्सल प्रभावित क्षेत्र मानपुर की रहवासी है पूर्णिमा. 30 वर्षीय पूर्णिमा के परिवार में पति राम कुमार नेताम सहित दो बच्चे पांच साल का बेटा नैतिक और तीन वर्षीय बेटी साक्षी है. बेटा स्थानीय निजी स्कूल में पढ़ रहा है. वहीं बेटी साक्षी का आंगनबाड़ी में बौद्धिक विकास जारी है। पूर्णिमा का पति राम कुमार यहाँ के एफसीआई गोदाम में हमाली का काम करते है.

पूर्णिमा शिक्षा के महत्व को समझती है और बच्चों को बेहतर शिक्षा देने की चाह के चलते अपने बेटे को निजी स्कूल में पढ़ा रही है. लेकिन मजदूरी से पति की जो आमदनी है उससे घर के अन्य खर्चो के साथ-साथ बच्चे के स्कूल का खर्च वहन करना इस परिवार के लिए बहुत मुश्किल था. पूर्णिमा सोचती कि काश पति की मदद कर पाती लेकिन ज्यादा पढ़ी लिखी न होने के कारण पूर्णिमा निराश हो जाया करती. बढ़ते बच्चों का खर्च और परिवार की दैनिक जरूरतें पति की आमदनी से नही चल पा रही थी.

एक दिन पूर्णिमा को शासन की महत्वाकांछी योजना आजीविका ग्रामीण एक्सप्रेस योजना के बारे में पता चला. इस योजना तहत उसने ई रिक्शा के लिए आवेदन और जल्द ही उसे ई-रिक्शा भी मिल गया. ई-रिक्शा मिलने से पूर्णिमा के जीवन में बहुत बड़ा बदलाव आया. वह आत्मनिर्भर बन गई. पति की मदद ना कर पाने का मलाल जो पूर्णिमा को था वह भी दूर हो गया. ई रिक्शा से पूर्णिमा आज राहगीरों को उनकी मंजिल तक पहुंचा रही है लोग पूर्णिमा को बड़ी हैरानी से रिक्शा चलाते हुए देखते हैं तो दूसरी ओर महिलाएं पूर्णिमा के ई-रिक्शा चलाने से काफी खुश है वे कहती हैं कि महिला रिक्शा चालक की वजह से वे आने जाने में असुरक्षित महसूस नहीं करती. पूर्णिमा इस काम के जरिये आमदनी अर्जित कर अपने पारिवारिक जीवन की गाड़ी को भी खुशहाली की ओर बढ़ा रही है. वहीं इस दुर्दांत नक्सल प्रभावित दूरस्थ आदिवासी बाहुल्य ग्रामीण इलाके के लिए कभी दुर्लभ वाहन की तरह देखा जाने वाला ऑटो रिक्शा अब क्षेत्र के ग्रामीणों-किसानों के लिए भी मददगार बना हुआ है. अब जबकि घर मे ई रिक्शा के जरिये अतिरिक्त आय अर्जित हो रही है तो बेहतर ढंग से घर चलाने और बच्चों की माकूल शिक्षा व परवरिश के लिए पूर्णिमा के परिवार के सामने आसान राह बनने लगी है.

सुबह घर के काम-काज निपटा कर पूर्णिमा रोजाना ई रिक्शा के जरिये आस-पास के गावों तक लोगों का आवागमन कराकर वह आय अर्जित करती है. वहीं पूर्णिमा के पति राम भी सुबह से दोपहर अथवा शाम तक गोदाम में हमाली करने के बाद स्वयं रिक्शे की कमान संभाल कर लोगो को लाने ले जाने का काम करते हैं. इनकी इनकम सवारियों की संख्या पर निर्भर है. फिर भी रोजाना 2 से पांच सौ तक की आय इन्हें ई रिक्शा के जरिये मिल जाती है.

सरकार द्वारा प्रदत्त ये ई रिक्शा न केवल एक परिवार की आय का जरिया बना है, बल्कि क्षेत्रीय किसानों-ग्रामीणों के लिए मददगार भी साबित हो रहा है. दरअसल इलाके में कई ऐसे रूट हैं जहाँ यात्री बस व अन्य माल वाहक नहीं चलते. ऐसे में ब्लॉक मुख्यालय से यदि ग्रामीणों को कोई भारी भरकम वस्तुएं अपने गाँव ले जानी होती है तो उन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ता. क्योंकि सायकल, पैदल या मोटर सायकिल में भारी सामान लेकर जाना संभव नहीं इसके अलावा किसानों को धान बीज, खाद, व अन्य उपकरण या सामान ले जाने में अब बहुत सुविधा हो रही है. विकट परिस्थिति में किसानों और ग्रामीणों के लिए ये ई रिक्शा मददगार बना हुआ है. जहां एक ओर लोगों को  खाद-बीज आदी को ब्लॉक मुख्यालय से गांव तक ले जाने के लिए बड़े वाहनों को भारी भरकम किराया देना पड़ता था. तो वहीं दूसरी ओर यह ई रिक्शा बहुत ही कम भाड़े में उपलब्ध है. लोग अब बड़े वाहन किराये में लेने से बचने लगे हैं. ग्रामीणों और राहगीरों को विभिन्न प्रकार से राहत देने के साथ-साथ पूर्णिमा के परिवार को अतिरिक्त आय व धन संग्रह का साधन ये ई रिक्शा बना हुआ है.