लोकेश सिन्हा, गरियाबंद/रायपुर। कौन कहता है कि आसमाँ में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों. दुष्यंत कुमार का यह शेर उन लोगों के लिए एक उदाहरण है. जिनमें करने के लिए जोश और जुनून होता है. अगर आपके पास भी ऐसा ही जोश और जुनून है तो शारीरिक मुश्किलें भी आपका रास्ता रोक नहीं सकती.
हम बात कर रहे हैं एक ऐसे शख्स की जिसके साथ प्रकृति ने अन्याय कर उसे असहाय बना कर भेजा. जिसने घर-गांव से लेकर दोस्तों तक से अपनी शारीरिक विषमता को लेकर न जाने कितने ताने सुने. इन तानों की वजह से और अपनी शारीरिक कमजोरी की वजह से न जाने कितने महीने आंसू बहाए. ईश्वर से इसे लेकर सवाल भी पूछा लेकिन जब कोई जवाब  नहीं मिला तो इन्हीं तानों को अपनी ताकत बना ली.
हम बात कर रहे हैं गरियाबंद जिले के ग्राम मालगांव के रहने वाले योगेश खुंटरे की. 25 साल के योगेश एक पैर से दिव्यांग हैं. अपनी शारीरिक अक्षमता की वजह से योगेश अवसाद ग्रस्त हो गए और 9 वीं पास करने के बाद उसने बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी. ज्यादा पढ़ाई नहीं करने और दिव्यांग होने की वजह से उन्हें कोई नौकरी भी नहीं मिल पा रही थी. इसी बीच योगेश और ज्यादा निराशा के भंवर में डूबने लगे थे. उसी दौरान उनके बड़े भाई ने व्यवसाय शुरु करने का सुझाव दिया लेकिन व्यवसाय शुरु करने के लिए पैसों की आवश्यकता थी और उसका इंतजाम करना उनके लिए टेढ़ी खीर साबित हो रहा था.
तभी उन्हें किसी ने अंत्यावसायी विभाग से विभिन्न व्यवसायों के लिए मिलने वाले ऋण की जानकारी दी. लोन पाने के लिए उन्होंने विभाग का चक्कर लगाना शुरु कर दिया. उन्हें कार्यालय के बार-बार चक्कर लगाते देख मुख्य कार्यपालन अधिकारी भारतेन्दु देवांगन ने उनकी मदद की और उन्हें सरकार की मिनीमाता स्वावलंबन योजना के तहत दिसंबर 2017 में 1 लाख 50 हजार रुपए का लोन स्वीकृत कर दिया.
लोन का पैसा मिलने के बाद योगेश ने 1 लाख रुपए से दुकान का निर्माण किया और 50 हजार रुपए से किराना सामान खरीदकर गांव में व्यवसाय शुरु कर दिया. देखते ही देखते उनकी दुकान चल निकली और गांव के लगभग सभी लोग उन्हीं के दुकान से किराना का सामान खरीदने लग गए. योगेश के मुताबिक 6 महीने बाद प्रत्येक महीने लगभग 60 से 90 हजार रुपए का वे सामान बेच लेते हैं.
इससे उन्हें अच्छा खासा मुनाफा भी हो जाता है. उन्हें इस तरह अच्छा खासा कमाते देख उनकी माँ भी सुकून महसूस करने लगी है और खुशी से फूली नहीं समाती है कि उनकी सारी चिंताएं अब मिट गई है. उधर योगेश अब अपने मिट्टी के कच्चे खपरैल वाले घर की जगह पक्का मकान का निर्माण में जुट गए हैं.
जो लोग कभी योगेश को हिकारत की नजर से देखते थे अब वही लोग उन्हें सम्मान की नजरों से देखने लगे है. पूरा गांव अब योगेश की प्रशंसा करते नहीं थकता. गांव के बाकी युवा भी नौकरी की जगह अब व्यवसाय करने की मन में ठान लिए हैं.