विधि अग्निहोत्री, रायपुर/शेख आलम, धरमजयगढ़। धरमजयगढ़ के प्रेमनगर निवासी विश्वनाथ विश्वास के परिवार के पास केवल ढ़ाई एकड़ खेत है. परिवार का गुज़ारा केवल खेती से ही चलता था. गरीबी का यह सिलसिला तब शुरू हुआ जब विश्वनाथ के पिता भारत आए. सन् 1970 के दशक में बांग्लादेश से कई शराणार्थी भारत आये थे. इनमें से एक विश्वनाथ के पिता का भी परिवार था. विश्वनाथ के पिता अपने भाई के साथ भारत आए. भारत सरकार की तरफ से उन्हे परिवार पालने के लिए प्रेमनगर में 5 एकड़ की जमीन दी गई. विश्वनाथ के पिता और भाई खेती करके ही परिवार चलाते. इतनी कम आमदनी से पढ़ाई का खर्च उठाना मुश्किल था. लिहाज़ा पैसों के अभाव में विश्वनाथ केवल 12वीं तक ही पढ़ पाए. आगे की पढ़ाई के लिए उनके पिता के पास पर्याप्त पैसे नहीं थे. इसलिए विश्वनाथ भी पढ़ाई का सपना छोड़, परिवार का पेट पालने खेती किसानी में जुट गए. हालांकि अब भी परिवार के हालात जस के तस बने हुए थे.

विश्वनाथ ने आमदनी बढ़ाने के लिए मुर्गी फार्म खोलने का फैसला किया, इसके लिए विश्वनाथ ने उद्योग विभाग में आवेदन दिया. लेकिन दुर्भाग्यवश विभाग से कोई सहायता नहीं मिली. इसके बाद विश्वनाथ ने स्टेशनरी दुकान खोलने के लिए भी उद्योग विभाग में एक बार फिर से अर्जी लगाई लेकिन इस बार भी विश्वनाथ के हाथ निराशा लगी. अब घर का खर्च तो किसी भी तरह चलाना ही था इसलिए विश्वनाथ ने घर पर ही एक छोटी सी किराना दुकान खोली. पैसों के अभाव के चलते विश्वनाथ अपनी दुकान में ज्यादा सामान नहीं रख पाते थे. इसलिए 7 लोगों का परिवार चलाने में काफी दिक्कतें आ रहीं थी. साथ ही 3 बच्चों की शिक्षा भी जरूरी थी. दुकान और खेत से जितनी आमदनी होती वह केवल परिवार का पेट भरने में ही खर्च हो जाता. विश्वनाथ की सालाना आय बमुश्किल 60 से 70 हजार होती. बूढ़े हो चले माता-पिता की देखभाल और बच्चों को अच्छी शिक्षा देने की इच्छा विश्वनाथ को सोने ना देती. वह दिन रात सोचता की किस तरह आमदनी बढ़ाई जाए.

एक दिन विश्वनाथ को सरकार की मुद्रा योजना के बारे में पता चला. उसने बिना समय गवांए 50 हजार के लोन का आवेदन दिया. इस बार विश्वनाथ को निराशा हाथ नहीं लगी. उसे जल्द ही 50 हजार का लोन मिल गया. इन पैसों से विश्वनाथ ने अपनी किराना दुकान को बढ़ाया और दुकान के लिए काफी सामान भी खरीदा. अब विश्वनाथ की छोटी सी दुकान बड़ी हो चली थी. पहले विश्वनाथ पैसों के अभाव में जो सामान अपनी दुकान में नहीं रख पा रहा था. लोन मिलने पर अब विश्वनाथ की दुकान में लगभग सभी सामान मिलता है गांव के लोगों को सामान खरीदने के लिए अब कहीं और जाना नहीं पड़ता. विश्वनाथ ने बताया कि बांग्लादेश से भारत आने पर उसके माता-पिता को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा, लेकिन भारत सरकार की ओर से 5 एकड़ की ज़मीन मिलने के बाद उन्हे पेट भरने का एक साधन मिल गया. और किसी तरह परिवार का गुज़ारा होने लगा. हालांकि विश्वनाथ और अन्य बच्चों के जन्म के बाद माता-पिता को अत्यंत कठिन  परिस्थितियों का सामना करना पड़ा. परिवार को आर्थिक संकट से उबारने के लिए ही विश्वनाथ ने कम उम्र में ही अपने नाजु़क कधों पर घर चलाने की जिम्मेदारी उठा ली.

विश्वनाथ ने बताया कि सरकार की मुद्रा योजना की वजह से उसका जीवन पहले से कहीं बेहतर हुआ है क्योंकि इससे पहले उसे किसी भी योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा था इससे विश्वनाथ और उसके परिवार को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था. लेकिन मुद्रा योजना के लिए आवेदन करने के बाद बिना विलंब के लोन मिला इससे विश्वनाथ को बहुत प्रसन्नता हुई. अब विश्वनाथ को अपनी किराना दुकान से प्रति दिन 3000 से 4000 रूपय की आमदनी होती है. साथ ही खेती से भी कुछ आमदनी होती है. अब विश्वनाथ की सालाना आय लगभग 2 लाख तक होती है इससे परिवार का खर्च आसानी से चल रहा है. विश्वनाथ के तीनों बच्चे अब स्कूल जाते है विश्वनाथ का पढ़ाई पूरा करने का जो सपना अधूरा रह गया था वह अब बच्चों के माध्यम से पूरा हो रहा है. विश्वनाथ अपनी खेती को आगे बढ़ाने के लिए अन्य सरकारी योजना का लाभ उठाने की सोच रहे हैं साथ ही वे सरकार का शुक्रिया अदा करते हुए कहते हैं कि सरकार द्वारा लाई गई योजनाओं का लाभ उठा उसके जैसे गांव के अन्य युवकों ने भी अपनी ज़िदगी को बेहतर बनाया है.