भरत भूषण, सारंगगढ़। कैरियर बनाने के लिए हर किसी की पहली पसंद सरकारी नौकरी या फिर मल्टीनेशनल कंपनियां होती हैं. लेकिन ऐसे बहुत से क्षेत्र हैं जिनमें कैरियर बनाया जा सकता है या फिर उन क्षेत्रों को अपनी आमदनी का बेहतर जरिया बनाया जा सकता है. ऐसे ही क्षेत्रों में कृषि और मत्स्य पालन भी शामिल है. उसमें भी मत्स्य पालन या मछली पालन के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं. मत्स्य पालन में धन कमाने की अपार संभावनाएं हैं.
सारंगढ़ विधानसभा के उलखर गांव के कृष्ण कुमार जायसवाल की पहचान आज मत्स्य पालन को लेकर है. वे पिछले 18 वर्षों से यह कार्य कर रहे हैं. मछली पालन से उन्हें लाखों रुपए की आमदनी होती है. उनके इस कार्य से प्रभावित होकर गांव के 38 और युवाओं ने मछली पालन का काम शुरु कर दिया है. लेकिन कृष्ण कुमार जायसवाल की पारिवारिक परिस्थितियां सदैव से इतनी अच्छी नहीं थी. मछली पालन के पहले उनका परिवार गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहा था.
सारंगगढ़ से 7 किलोमीटर दूर ग्राम उलखर में रहने वाले 45 वर्षीय कृष्ण कुमार जायसवाल के पिता किसान थे. परिवार के पास महज 3 एकड़ खेत था. जिसमें वे पारंपरिक रुप से धान की खेती करते थे लेकिन खेती से होने वाली आमदनी से बमुश्किल घर के खाने के लिए ही धान हो पाता था. कृष्ण कुमार शुरु से ही पढ़ाई में मेधावी थे. 1993 में बीए पास करने के बाद उन्होंने MPPSC की तैयारी शुरु कर दी और 1994 में उन्होने प्री और मेन्स निकालने के बाद इंटरव्यू तक पहुंचे लेकिन इंटरव्यू में उनका सलेक्शन नहीं हो पाया. जिसकी वजह से उनका मन पढ़ाई और नौकरी दोनों से हट गया.
परिवार की आर्थिक स्थिति भी ऐसी नहीं थी कि वे आगे तैयारी कर पाते लिहाजा उन्होंने खेत में पिता का हाथ बंटाना शुरु कर दिया. खेती से परिवार का गुजारा नहीं हो पाता था इसलिए उनके छोटे भाई ने प्रायवेट बस मे कंडेक्टरी शुरु कर दी. जिससे परिवार को काफी सहारा मिल गया. इसी बीच कृष्ण कुमार जायसवाल ने पंच का चुनाव लड़ा और उसमें वे जीत गए. उनके पंचायत के कार्यकाल के दौरान ही उनकी मुलाकात कृषि इंस्पेक्टर अनिता भारद्वाज से हुई. उन्होंने कृष्ण कुमार जायसवाल की पारिवारिक परिस्थितियों को देखते हुए उन्हें समिति बनाकर तालाबों का ठेका लेने की सलाह दी. कृष्ण कुमार ने गांव के ऐसे 20-21 निर्धन परिवार के लोगों को लेकर समिति बनाई जो गरीबी रेखा से नीचे अपना जीवन यापन करते थे.
समिति बनाने के बाद उन्होंने पहला ठेका फरवरी 2005 में ग्राम पंचायत छोटे गनसुली से मिला. समिति को 3 तालाब आबंटित हुआ. जिसमें समिति के सभी लोग मिलकर काम करते थे. उसके साथ ही उनकी समिति ने ग्राम पंचायत अंडोला का तालाब लेकर उसमें भी मछली पालन शुरु कर दिया. उधर उनके गांव उलखर की पंचायत ने 2009 में तालाबों का ठेका एक स्व सहायता समूह को दे दिया. जिसकी अपील उन्होंने एसडीएम कोर्ट में की. वहां फैसला उनकी समिति के पक्ष में आया. स्व सहायता समूह ने इस फैसले के खिलाफ कलेक्टर कोर्ट में अपील कर दी. कलेक्टर कोर्ट ने स्व सहायता समूह के पक्ष में फैसला सुनाते हुए ग्राम पंचायत द्वारा किए गए आबंटन को यथावत रखा. इसके बाद कृष्ण कुमार की समिति ने संभागायुक्त कोर्ट में अपील की जहां कलेक्टर कोर्ट के फैसले को पलटते हुए संभागायुक्त ने उनकी समिति के पक्ष में फैसला सुनाया. वहां से हारने के बाद स्व सहायता समूह ने हाईकोर्ट में इस फैसले के खिलाफ अपील की लेकिन हाईकोर्ट से भी स्व सहायता समूह को निराशा हाथ लगी. लेकिन कोर्ट के आदेश के बावजूद 2014 में  उन्हें पट्टा आबंटित नहीं किया और आबंटन की फाइल कलेक्टर के पास मामले को भेज दिया. जहां कलेक्टर ने कृष्ण कुमार की समिति को 10 वर्ष के लिए 4 तालाबों का पट्टा आबंटित कर दिया. उधर समिति के सदस्यों ने उलखर का पट्टा अपने पास रख उन्हें बाकी तालाबों को दे दिया.
कृष्ण कुमार जायसवाल आज 10 से ज्यादा तालाबों में मछली पालन कर रहे हैं. इससे उन्हें 10 लाख से ज्यादा की आमदनी होती है. उन्हें 2016  में प्रथम पुरुस्कार प्राप्त हुआ. उनके इस मुकाम तक पहुंचने में सरकार की योजनाओं का अहम योगदान रहा. उन्हें अनुदान राशि सन 2010 में 1 लाख रुपये व एनईडीपी  द्वारा नाव जाल 20114 में अनुदान राशि 13300 निज बीज अनुदान, 2016 में 11400 रुपये निज बीज अनुदान राशि 2016 में 135000 रुपये नवीन योजना अंतर्गत 2017 में 90000 हजार रुपये नवीन योजना अंतर्गत अनुदान मिला गया है.
एक वक्त गरीबी की मार की वजह से कृष्ण कुमार आगे पढ़ाई नहीं कर सके लेकिन उन्होंने अपने दोनों बेटों की शिक्षा-दीक्षा में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. बड़े बेटे को नीट की तैयारी के लिए भिलाई में कोचिंग कराया. नीट की परीक्षा में वेटनरी कालेज के लिए उसका चयन हुआ भी लेकिन एमबीबीएस करने की इच्छा की वजह से उसने एडमिशन नहीं लिया. वहीं छोटा बेटा बिलासपुर सेंट्रल यूनिवर्सिटी में बीएससी आनर्स की पढ़ाई कर रहा है. उन्होंने अपने बच्चों के साथ ही छोटे भाई के बेटे को भी रायपुर में पढ़ाई करवा रहे हैं.