विधि अग्निहोत्री की रिपोर्ट 

जशपुर. कहते हैं ना कि पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं ऐसी ही कहानी एक गरीब किसान के बेटे दीपक की है. जिसके परिवार में कोई भी पढ़ा लिखा नहीं था ना ही माता पिता और ना ही दोनों बहनें. पत्थलगांव विकासखंड के छोटे से गांव कोईकेला के दीपक ने गरीबी की वजह से हाथ पे हाथ डालकर बैठने की बजाय अपना पूरा ध्यान पढ़ाई पर केंद्रित रखा. दीपक हर दिन 3 से 4 किलोमीटर का पैदल सफर कर स्कूल जाता. ज्ञान अर्जित करने और कक्षा में प्रथम की ललक उसे आगे पढ़ने के लिए प्रेरित करती. दीपक स्कूल से घर आकर माता-पिता की मदद करता और समय मिलते ही पढ़ाई में जुट जाता. पढ़ने का जुनून ऐसा था कि स्कूल से लौटकर खेती का काम कर दीपक रात-रात भर जाग कर पढ़ाई करता.

8वीं तक की पढ़ाई उसने गांव में ही पूरी की. आगे की पढ़ाई के लिए उसे शहर जाना था क्योंकि उसके गांव के स्कूल में आगे की पढ़ाई नहीं हो सकती थी. उसने अपने पिता से पढ़ाई के लिए पास के ही गांव कुनकुरी जाने का आग्रह किया. गरीब पिता के निए बेटे को पढ़ाना मुश्किल था लेकिन गरीबी के बावजूद दीपक के पिता ने पढ़ाई के प्रति उसका समर्पण देख उसका एडमिशन कुनकुरी के सरकारी स्कूल में करा दिया. यहाँ आकर दीपक ने और अधिक लगन के साथ पढ़ाई की. सभी शिक्षकों ने पढ़ाई में दीपक की पूरी मदद की. उसकी जिज्ञासा देखकर शिक्षक उससे अक्सर कहते कि ‘तुम बड़े होकर जरूर इंजीनियर बनोगे’ लेकिन इस बालक को यह भी नहीं पता था कि इंजीनियर बनते कैसे हैं. शिक्षकों से मिली जानकारी के अनुसार दीपक को बस इतना पता था कि इंजीनियर बनने के गणित विषय लेकर पीईटी की परीक्षा देनी होती है.

दसवीं की पढ़ाई के दौरान उसे जिला प्रशासन द्वारा संचालित संकल्प शिक्षण संस्थान के बारे में पता चला जहाँ इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा हेतु नि:शुल्क कोचिंग दी जाती है. जैसे ही इस बालक को ‘संकल्प’ संस्थान के बारे में पता चला उसने ज़ोर-ओ-शोर से तैयारी की और प्रवेश परीक्षा में अच्छा रैंक हासिल कर संकल्प संस्थान में चयनित हो गया. दीपक अब तक विपरीत हालात में अपनी पढ़ाई करता हुआ यहां पहुंचा था. लेकिन यहां आने के बाद उसे पढ़ाई का ऐसा माहौल मिला जिसकी उसने कल्पना नहीं की थी. अच्छे टीचर्स मिले. पढ़ाकू दोस्त मिले. पढ़ाई के बाद घर के लिए काम करने की चिंता नहीं रहती. लिहाज़ा दीपक दोगुने उत्साह और जोश के साथ अपने लक्ष्य को हासिल करने में जुट गया.

कुछ दिन बाद संकल्प में बीताने के बाद इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बारे में उसकी मालूमात बढ़ने लगी. उसे पता चला कि इंजीनियरिंग के लिए सबसे अच्छा संस्थान आईआईटी है. जहाँ प्रवेश पाना आसान नहीं है. दीपक तो कठिन लक्ष्यों को हासिल करते हुआ यहां पहुंचा था सो उसने यहां भी अपने लिए एक कठिन लक्ष्य रखा. दीपक ने ठाना कि अगर इंजीनियरिंग करनी है तो सिर्फ आईआईटी से. वह आईआईटी में पढ़ने के सपने देखने लगा. दीपक ने आईआईटी में एडमिशन के लिए कमर कस ली वो दिन रात पढ़ाई में लगा रहता. अब उसका एक ही लक्ष्य था आईआईटी से इंजीनियरिंग करना. हांलाकि सभी शिक्षकों ने भी दीपक के सपने को पूरा करने में योगदान दिया.

अब वह दिन भी आ गया जब परीक्षा परिणाम घोषित होने को थे दीपक अपने सपनों के सच होने के इंतज़ार में था. आखिरकार दीपक की अथाह मेहनत और लगन रंग लाई उसे 681 रैंक हासिल हुआ. ये दीपक के जुनून का ही नतीजा था कि उसका एडमिशन देश के सर्वोच्च शिक्षण संस्थान दिल्ली आईआईटी के टैक्सटाइल ब्रांच में हुआ. दीपक की इस उपलब्धि से उसके शिक्षक भी बहुत खुश हैं. दीपक के अनपढ़ माता-पिता को इस बात का अंदाज़ा भी नहीं था कि जिस संस्थान में जाने का सपना देश के अधिकतर बच्चे देखते हैं वहाँ दीपक पढ़ने जा रहा. हालाकि दीपक की लगन देखकर उसके माता-पिता को यकीन तो था कि उनका बेटा जरूर कुछ अच्छा करेगा.

एक छोटे से गांव का लड़का दीपक सभी के लिए मिसाल बन चुका था क्योंकि वह ऐसे परिवार से आता था जहाँ उसके माता-पिता के साथ साथ बहनें भी अनपढ़ थी. दीपक हमेशा से आकाश में उड़ते हवाई जहाज को देख सोचा करता कि ये पास से कितना बड़ा होगा? इसमें बैठने के लिए कितने पैसे लगते होंगे? इस तरह के तमाम सवाल उसके दिमाग में कौंधा करते थे. संस्थान ने अनजाने में उसके इस सपने को भी पूरा कर दिया.  दीपक दिल्ली एडमिशन लेने हवाई जहाज से पहुंचा.

दीपक के सपनों की उड़ान जारी है. वो इस वक्त दीपक आईआईटी दिल्ली में पढ़ाई कर रहा है. दीपक अपनी सफलता का श्रेय कड़ी मेहनत के साथ साथ जिला प्रशासन द्वारा संचालित संकल्प शिक्षण संस्थान को देता है.  उसकी इस सफलता से पूरा गांव गौरवान्वित है.