कांकेर। सपने बंद आंखों से भी देखे जाते हैं और खुली आंखों से भी. बंद आंखों के सपने कभी सच नहीं होते लेकिन खुली आंखों से जो सपने देखे जाते हैं उसे सच किया जा सकता है. ऐसे सपनों को सच करने के लिए इच्छा शक्ति के साथ ही सही दिशा में लगन और मेहनत की आवश्यकता होती है. ऐसा ही एक सपना कांकेर के एक ऐसे कृषक ने देखा था जिसके पास महज कुछ एकड़ खेत तो थे लेकिन उसमें से भी कुछ खेत बंजर थे. ऐसे में किसान और उसके परिवार के लिए दो जून की रोटी भी दूभर थी.

हम बात कर रहे हैं कांकेर के बेवरती ग्राम में रहने वाले आशाराम नेताम की. आशाराम नेताम अब किसी परिचय के मोहताज नहीं है. आशाराम के परिवार में उनकी दादी, माता-पिता, पत्नी और दो बच्चे हैं. कुल 7 लोगों के परिवार में आशाराम अकेले कमाने वाले थे. परिवार के पास महज 6 एकड़ ही कृषि जमीन थी उसमें भी कुछ एकड़ बंजर पड़ी थी जिसमें एक दाना भी अनाज नहीं होता था. आशाराम के लिए परिवार का लालन पोषण आसान नहीं था. आशाराम स्नातक उपाधि हासिल करने के पश्चात अपनी पैतृक 6 एकड़ भूमि में अपने पिता के साथ हाथ बंटाना शुरू किया. वे परंपरागत खेती के रूप में धान की फसल लेने के साथ ही छोटी-मोटी डेयरी भी चलाते थे. इससे उन्हें प्रति वर्ष लगभग 70 हजार रूपये के आसपास की आमदनी होती थी. वर्ष 2013-14 में कृषि विज्ञान केन्द्र कांकेर के संपर्क में आने के बाद नेताम ने समन्वित कृषि प्रणाली को अपनाया अब वे खरीफ में धान और रबी में अलसी और चना की फसल लेते हैं.

इसी बीच उन्हें मछली पालन की जानकारी मिली. जिसके जरिए अच्छी कमाई की जा सकती थी. आशाराम कृषि विकास केन्द्र के अधिकारियों से मुलाकात किया.  केवीके के अधिकारी एक दिन उसका खेत देखने पहुंचे और सरकार की योजना के तहत उन्होंने खेत में तालाब बनवाने की स्वीकृती दे दी. तालाब खुद जाने के बाद आशाराम ने उसमें मछली पालन शुरु कर दिया. मछली पालन से आशाराम को लाखों रुपए की आमदनी हुई. जिसके बाद आशाराम की जिंदगी में परिवर्तन शुरु हो गया.  उस आमदनी से उसने दो और तालाब खुदवा लिए और उसमें भी मछली पालन शुरु कर दिया.

इसी बीच आशाराम को नाबार्ड की एक योजना की जानकारी हुई. आशाराम ने नाबार्ड की योजना के अंतर्गत आवेदन कर डेयरी व्यवसाय के लिए 5 लाख रुपए का लोन लिया जिसमें उसे 33 प्रतिशत का अनुदान प्राप्त हुआ. अनुदान के पैसों से उसने डेयरी के लिए शेड निर्माण के साथ ही 5 गायें खरीदी और उनका दूध बेचना शुरु कर दिया. धीरे-धीरे उनका डेयरी व्यवसाय भी अच्छा खासा चल निकला. इस वक्त आशाराम के पास 35 मवेशी हैं जिनमें जर्सी, गीर एवं साहिवाल नस्ल के पशु हैं जिनकी दूध उत्पादन क्षमता काफी अधिक है. जिनसे प्रतिदिन 200 लीटर दूध का उत्पादन होता है. वहीं जिले में अमूल की फैक्ट्री खुलने के बाद वे सारा का सारा दूध अमूल की फैक्ट्री को सप्लाई कर देते हैं.  केवल डेयरी से ही उन्हें साल भर में 10 लाख रूपये की सकल आय होती है.  वे गांव के अनेक लोगों को अपने खेत पर रोजगार उपलब्ध करा रहे हैं। श्री नेताम आज अपने क्षेत्र के अन्य किसानों के लिए रोल मॉडल बन गए हैं.

आशाराम नेताम ने अपनी मेहनत और लगन से कामयाबी की नई इबारत लिखी है और अन्य किसानों के मन में आशा की नई किरण जगाई है। कृषि के क्षेत्र में नेताम की उपलब्धियों को देखते हुए उन्हें छत्तीसगढ़ शासन द्वारा कृषक समृद्धि सम्मान तथा इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा कृषक फैलोशिप सम्मान से इस साल नवाजा गया है.