दिल्ली हाई कोर्ट(Delhi High court) ने फीस न चुकाने के कारण छात्रों के प्रति अपमानजनक व्यवहार करने के मामले में द्वारका के दिल्ली पब्लिक स्कूल को कड़ी चेतावनी दी है. न्यायमूर्ति सचिन दत्ता की पीठ ने इस पर अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि स्कूल प्रबंधन ने छात्रों के साथ अत्यंत घटिया और अमानवीय तरीके से पेश आया है. कोर्ट रूम में उपस्थित छोटे बच्चों की आंखों में भय की झलक ने पूरे माहौल को गहन भावुकता से भर दिया. जस्टिस सचिन दत्ता ने स्पष्ट रूप से कहा कि यदि ये स्कूल केवल पैसे कमाने के लिए कार्य कर रहे हैं, तो उन्हें बंद कर देना चाहिए.

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अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि शिक्षा एक सेवा है, न कि व्यापार. बच्चों को लाइब्रेरी में बंद करना, उन्हें कक्षा में जाने से रोकना और अन्य छात्रों से अलग करना एक अमानवीय कार्य है. बच्चों को इस तरह से समझाना संविधान के विरुद्ध है.

माता-पिता का आरोप

याचिकाकर्ता छात्रों के अभिभावकों ने यह आरोप लगाया है कि स्कूल ने बिना अनुमति की फीस न चुकाने के कारण बच्चों के साथ दुर्व्यवहार किया. इस मामले में एक चौंकाने वाला मोड़ तब आया जब कई छात्र यूनिफॉर्म और किताबों के साथ अदालत में उपस्थित हुए. दूसरी ओर, स्कूल के वकील ने यह तर्क दिया कि दिसंबर में छात्रों को कारण बताओ नोटिस भेजे गए थे, लेकिन मार्च तक बकाया राशि का भुगतान न करने पर छात्रों को रोका गया.

शिक्षा निदेशालय सख्त 

दिल्ली सरकार के शिक्षा विभाग ने 8 अप्रैल को एक कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए स्कूल की मान्यता रद्द करने की चेतावनी दी है. विभाग ने यह जानना चाहा है कि छात्र-विरोधी गतिविधियों के बावजूद स्कूल के खिलाफ सख्त कार्रवाई क्यों नहीं की जानी चाहिए.

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दिल्ली हाई कोर्ट का निर्देश 

दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायाधीश दत्ता ने स्पष्ट किया कि फीस का भुगतान न कर पाने के कारण छात्रों के प्रति अमानवीय व्यवहार करने का कोई अधिकार नहीं है. उन्होंने स्कूल के प्रिंसिपल के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई की आवश्यकता पर जोर दिया.

अदालत ने स्कूल को दिया अहम आदेश

1. छात्रों को लाइब्रेरी या अन्य स्थानों पर बंद नहीं किया जाना चाहिए. 

2. उन्हें कक्षाओं में उपस्थित रहने और सहपाठियों से बातचीत करने से नहीं रोका जाना चाहिए. 

3. किसी भी छात्र को सुविधाओं से वंचित नहीं किया जाना चाहिए. 

जांच रिपोर्ट ने खोली स्कूल की असलियत

दक्षिण-पश्चिम दिल्ली के जिला मजिस्ट्रेट द्वारा बनाई गई समिति की रिपोर्ट में स्कूल के व्यवहार को गंभीर और भेदभावपूर्ण करार दिया गया है. रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि फीस न चुकाने वाले छात्रों को अलग रखा गया, उन्हें मानसिक रूप से परेशान किया गया और उन्हें शैक्षणिक सुविधाओं से वंचित किया गया.

सरकारी कार्रवाई और अगला कदम

दिल्ली सरकार के शिक्षा निदेशालय ने एक स्कूल को कारण बताओ नोटिस जारी किया है. न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि यदि आवश्यक सुधार नहीं किए गए, तो स्कूल की मान्यता रद्द की जा सकती है, और प्रिंसिपल के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई की संभावना भी जताई गई है. अदालत ने स्कूल को तत्काल छात्र-हित में दिशा-निर्देश लागू करने का आदेश दिया है. मामले की अगली सुनवाई में स्कूल प्रबंधन और शिक्षा विभाग को अपना जवाब प्रस्तुत करने के लिए कहा गया है.