एक राष्ट्र, एक चुनाव’ (ONOE) विधेयक पर संसद की संयुक्त समिति (JPC) के सामने उपस्थित होकर भारत के चार पूर्व मुख्य न्यायाधीशों ने एक साथ चुनाव कराने के लिए प्रस्तावित कानून में चुनाव आयोग को दी गई व्यापक शक्तियों पर सवाल उठाया है। बताया जा रहा है कि शुक्रवार को पूर्व मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर और डी वाई चंद्रचूड़ ने इस बात पर संदेह जताया था कि क्या किसी राज्य में एक साथ चुनाव कराने में देरी करने का निर्णय लेने का चुनाव आयोग का अधिकार संवैधानिक रूप से स्वीकार्य है?
बता दें कि, दोनों पूर्व चीफ जस्टिस ‘एक देश एक चुनाव’ पर बनी जेपीसी के समक्ष अपना प्रस्तुतीकरण देने के लिए पहुंचे थे। दोनों पूर्व मुख्य न्यायाधीशों ने जेपीसी को यह सुझाव दिया कि चुनाव आयोग को इतनी बेलगाम ताकत नहीं दी जा सकती, जितनी कि इस संशोधन बिल में प्रस्तावित की गई है। उन्होंने कहा कि इसके लिए नियंत्रण और संतुलन बनाए रखने के लिए एक सिस्टम होना चाहिए। इसके अलावा, दोनों पूर्व चीफ जस्टिस ने संसदीय समिति को सुझाव देते हुए कहा कि चुनावों के संचालन के लिए एक निगरानी तंत्र होना चाहिए।
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‘संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करता’
पूर्व मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ और जे. एस. खेहर ने ‘एक देश, एक चुनाव’ विधेयक में चुनाव आयोग को दिए गए विशेष अधिकारों पर भी चिंता जताई, लेकिन कहा कि यह संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करता। खेहर ने सुझाव दिया कि चुनाव की तारीख तय करने में संसद या केंद्र की भूमिका होनी चाहिए, न कि सिर्फ चुनाव आयोग की। साथ ही, उन्होंने आपातकाल और विधानसभा का अल्प कार्यकाल जैसे मुद्दों पर विधेयक में स्पष्टता की जरूरत जोर दिया। हालांकि, ऐसा माना जा रहा है कि जस्टिस चंद्रचूड़ ने जेपीसी से कहा कि चुनाव आयोग की शक्तियां संवैधानिक खामियों से ग्रस्त हो सकती हैं।
गौरतलब है कि, इससे पहले मार्च में राज्यसभा सांसद और पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने भी कहा था कि चुनाव आयोग को एक साथ चुनाव कराने का कार्यक्रम तय करने के लिए असीमित अधिकार दिए गए हैं। वहीँ फरवरी में पूर्व मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित ने भी चुनाव आयोग की शक्ति सहित विभिन्न पहलुओं पर कुछ सुझाव दिए थे। संसदीय समितियों की कार्यवाही को विशेषाधिकार प्राप्त होती है और बैठकों के दौरान सदस्यों के बीच बातचीत का विवरण सार्वजनिक नहीं किया जाता।
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संविधान के अनुच्छेद 82 में है यह प्रावधान
129वें संविधान संशोधन विधेयक, जो एक साथ चुनाव कराने का प्रावधान करता है, में कहा गया है कि चुनाव आयोग यह निर्णय करेगा कि एक साथ चुनाव कराना संभव है या नहीं।संविधान के अनुच्छेद 82A(5) में प्रस्तावित संशोधन में यह प्रावधान है कि यदि किसी विधानसभा का चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ कराना संभव नहीं है, तो चुनाव आयोग राष्ट्रपति को सिफारिश कर सकता है कि उस विधानसभा का चुनाव बाद में कराया जाए। इस पर पूर्व मुख्य न्यायाधीश जे.एस. खेहर ने सुझाव दिया कि विधेयक में यह भी साफ-साफ बताया जाना चाहिए कि यदि देश में आपातकाल की स्थिति आ जाए, तो उस दौरान चुनावों की प्रक्रिया कैसे चलेगी।
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समानता के अधिकार का उल्लंघन माना जा सकता है
इससे पता चलता है कि कम से कम दो पूर्व मुख्य न्यायाधीशों ने चुनाव आयोग के कार्यक्रम तय करने के अधिकार पर संसदीय निगरानी को शामिल करने के लिए कानून में संशोधन का सुझाव दिया है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने केवल ‘सार्वजनिक व्यवस्था या राष्ट्रीय सुरक्षा’ के आधार पर चुनाव कार्यक्रम में देरी करने के चुनाव आयोग के अधिकार को सीमित करने का भी सुझाव दिया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इस अधिकार का मनमाने ढंग से इस्तेमाल न हो। पर्याप्त सुरक्षा उपायों के बिना कानून बनाने में व्यापक शक्तियों को न्यायालयों द्वारा मनमाना माना जा सकता है और संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन माना जा सकता है।
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जस्टिस चंद्रचूड़ ने ‘संवैधानिक चुप्पी’ की बात कही
जस्टिस चंद्रचूड़ ने बिल में ‘संवैधानिक चुप्पी’ की बात कही। उन्होंने कहा कि बिल में कुछ ऐसी बातें हैं जो स्पष्ट नहीं हैं। प्रस्तावित बिल के अनुच्छेद 82A(5) पर उन्होंने कहा कि इलेक्शन कमीशन को इतनी ज्यादा शक्ति दी जा रही है कि वह किसी भी राज्य में चुनाव को यह कहकर टाल सकता है कि स्थिति ठीक नहीं है। बिल के अनुसार, चुनाव आयोग किसी राज्य में चुनाव को टाल सकता है अगर उसे लगता है कि लोकसभा चुनाव के साथ वहां चुनाव नहीं कराए जा सकते, लेकिन उस राज्य की विधानसभा का कार्यकाल लोकसभा के कार्यकाल के साथ ही खत्म होगा।
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विपक्षी नेताओं ने उठाए सवाल
सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस की प्रियंका गांधी सहित विपक्षी नेताओं ने इस बात पर सवाल उठाया कि अगर विधानसभा को कार्यकाल पूरा होने से पहले भंग कर दिया गया तो क्या यह संविधान सम्मत है? इस पर जस्टिस खेहर का सुझाव था कि इस फैसले में संसद या केंद्र सरकार की भूमिका होनी चाहिए, न कि केवल चुनाव आयोग की। एक अन्य चिंता यह भी जताई गई कि यदि किसी विधानसभा का शेष कार्यकाल केवल कुछ महीने ही बचा हो, तो क्या उस स्थिति में चुनाव कराना उचित होगा या नहीं, इस पर भी विधेयक में स्पष्टता होनी चाहिए।
एक्स सीजेआई के सुझावों पर क्या बोले जेपीसी के सदस्य
जेपीसी के एक वरिष्ठ सदस्य ने एक्स सीजेआई के सुझावों का स्वागत किया और कहा कि समिति विशेषज्ञों की राय के आधार पर बिल में सुधार करने के लिए तैयार है। सदस्य ने कहा, ‘हमारा लक्ष्य विशेषज्ञों और जनता की ओर से सुझाए गए सुधारों को शामिल करना है।’ उन्होंने यह भी कहा कि समिति संसद के लिए अपनी अंतिम रिपोर्ट तैयार करते समय इन विचारों पर ध्यान देगी।
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