रायपुर. सनातन धर्म में तुला संक्रांति का विशेष महत्व माना गया है. भगवान सूर्यदेव के तुला राशि में प्रवेश करने को ही तुला संक्रांति कहा जाता है. पंचांग के अनुसार इस बार तुला संक्रांति 17 अक्टूबर दिन सोमवार को है. हमारे देश के कई राज्यों में तुला संक्रांति का पर्व को बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन कई स्थानों पर नदियो के किनारो पर मेला भी लगता है. मान्यता है कि इस दिन अगर महालक्ष्मी को प्रसन्न कर लिया जाए तो उनकी कृपा से जीवन में कभी भी धन की कमी नहीं होती.
तुला संक्रांति में जिनकी कुंडली में सूर्य के तुला राशि में रहने वाले इस माह में पवित्र जलाशयों और नदी में स्नान करना बहुत शुभ फलदायी माना जाता है. इसलिए इस दिन किसी भी पवित्र नदी में स्नान करें, यदि किसी नदी में न जा पाएं तो घर पर ही नहाने के पानी में गंगाजल डालकर स्नान करें. इसके बाद सूर्य देवता की विधिवत् पूजा-अर्चना करके जरूरतमंदों को लाल रंग की वस्तुएं दान करें. मान्यता है कि ऐसा करने से सूर्य देवता और महालक्ष्मी दोनों ही अत्यंत प्रसन्न होते हैं और जातकों को धन-धान्य का आशीर्वाद देते हैं. राशि परिवर्तन के समय सूर्य भगवान की पूजा की जाती है.
तुला संक्रांति का महत्व
तुला संक्रांति में सूरज के बदलाव के कुछ दिनों बाद में शरद ऋतु खत्म हो जाती है और हेमंत ऋतु शुरू हो जाती है. ज्योतिष अनुसार ऋग्वेद संहित पदम, स्कंद और विष्णु पुराण के साथ ही सूरज पूजा का महत्व बताया जाता है. तुला संक्रांति का प्रभाव जातकों पर अलग-अलग पड़ता है. किसी राशि के जातकों के लिए सूर्य की चाल अच्छी रहती है, तो किसी राशि के जातकों के लिए खतरनाक हो सकती है. इसलिए शुभ फल पाने के लिए तुला संक्रांति के दिन स्नान, दान और सूर्य पूजा करने से हर तरह के पाप दूर हो जाते हैं. इससे उम्र बढ़ती है सूर्य पूजा से सकारात्मक ऊर्जा और इच्छा शक्ति बढ़ती है. तुला संक्रांति के दिन स्नान दान का महत्व तुला संक्रांति के दिन स्नान और दान का विशेष महत्व बनाया जाता है. इस दिन उगते सूरज को अरे देना बेहद पुण्यकारी माना जाता है.
तुला संक्रांति के दिन देवी लक्ष्मी और देवी पार्वती की पूजा की जाती है. इस दिन देवी लक्ष्मी को ताजे चावल अनाज, गेहूं के अनाजों और कराई. पौधों की शाखाओं के साथ भोग लगाया जाता है. जबकि देवी पार्वती को सुपारी के पत्ते, चंदन की पेस्ट के साथ भोग लगाया जाता है. कर्नाटक में नारियल को एक रेशम के कपड़े से ढका जाता है और देवी पार्वती का प्रतिनिधित्व मालाओं से सजाया जाता है. तुला संक्रांति का पर्व अकाल तथा सूखे को कम करने के लिए मनाया जाता है, ताकि फसल अच्छी हो और किसानों को अधिक से अधिक कमाई करने का लाभ प्राप्त हो. तुला संक्रांति के दिन किए जाने वाले उपाय तुला संक्रांति के दिन दुर्गा महाअष्टमी बनाई जाती है, जिसे पूरे भारत में बहुत श्रद्धा भाव से मनाया जाता है, परंतु कुछ राज्य में इस पर्व का अलग ही उत्साह देखने को मिलता है. इस दिन किसान चावल की फसल आने की खुशी मनाते हैं. उड़ीसा में एक और अनुष्ठान चावल, गेहूँ और दालों की उपज को सापना है, ताकि कोई कमी ना हो. तुला संक्रांति के दिन दुर्गा महाअष्टमी मनाई जाती है.
तुला संक्रांति के दिन किए जाने वाले उपाय
तुला संक्रांति पर मां लक्ष्मी की पूजा सफलता प्राप्त करने, अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त करने के लिए की जाती है. जिनकी कुंडली में सूरज नीच का हो. उस व्यक्ति को सूर्य शांति की पूजा और दान करना चाहिए.
तुला संक्रांति
- सूर्य का तुला राशि में प्रवेश करना तुला संक्रांति कहलाता है.
- कुछ राज्य में इस पर्व का अलग ही उत्साह देखने को मिलता है. इनमें मुख्य उड़ीसा और कर्नाटक है.
- यहां के किसान इस दिन को अपनी चावल की फसल के दाने के आने की खुशी के रूप में मनाते हैं. इन राज्यों में इस पर्व को बहुत अच्छे ढंग से मनाया जाता है.
- इसे तुला संक्रमण भी कहा जाता है. इस दिन कावेरी के तट पर मेला लगता है, जहां स्नान और दान-पुण्य किया जाता है.
- तुला संक्रांति और सूर्य के तुला राशि में रहने वाले पूरे 1 महीने तक पवित्र जलाशयों में स्नान करना बहुत शुभ माना जाता है.
- तुला संक्रांति का समय जो होता है उस दौरान धान के पौधों में दाने आना शुरू हो जाते हैं. इसी खुशी में मां लक्ष्मी का आभार जताने के लिए ताजे धान चढ़ाएं जाते हैं.
- संक्रांति का पर्व स्नान, दान और पुण्य कर्मों की दृष्टि से बहुत शुभ माना जाता है. इस दिन पितृों के निमित्त भी दान, पुण्य करने की परंपरा होती है.