21वीं सदी में भी अंधविश्वास (Superstition) ने डेरा जमा रखा है. भले ही विज्ञान कितनी तरक्की कर ले, लेकिन कई क्षेत्रों में अंधविश्वास आज भी बरकरार है. एक सरकारी अस्पताल में अंधविश्वास का खेल देखने को मिला. 38 साल पहले अस्पताल में हुई बुजुर्ग की मौत के बाद अब परिजन आत्मा लेने पहुंच गए. तंत्र-मंत्र के साथ अंधविश्वास का खेल चला और कथित आत्मा को ढोल-नगाड़ों के साथ परिजन लेकर चले गए.
पूरा मामला राजस्थान के बूंदी का है. जिले में अंधविश्वास (Superstition) के चलते आए दिन कथित आत्मा को मनाने का खेल चलता रहता है. भीलवाड़ा इलाके में इलाज के नाम पर मासूम बच्चों को भोपों द्वारा गर्म सलाखों से दागना आम बात है. इसी कड़ी में सोमवार को बूंदी जिला अस्पताल और हिंडोली सीएचसी में तंत्र-मंत्र और टोने-टोटके चलते रहे. यहां लोग अपने मृतक परिजनों की आत्मा लेने इन अस्पतालों में पहुंचे थे.
जानकारी के अनुसार 1984 में यानी 38 साल पहले जजावर निवासी कजोड़ पुत्र छीतर लाल की मौत हो गई थी. परिजनों ने बताया कि मारपीट के चलते कजोड़ को बूंदी अस्पताल में भर्ती करवाया गया. इलाज के दौरान अस्पताल में मौत हो गई. पिछले कई दिनों से घर में परेशानी होने की जानकारी परिवार ने भोपा पंडित को दी. पंडित ने 38 साल पहले हुई कजोड़ की आत्मा होना बताया. परेशान से बचने और सुख चैन की प्राप्ति के लिए पंडित ने मौत वाली जगह से आत्मा लेने को कहा. परिवार और ग्रामीण ढोल नगाड़ों के साथ अस्पताल पहुंचे. अस्पताल परिसर में उन्होंने जोत जलाई और भोपे ने तंत्र मंत्र शुरू किया. कुछ देर बार परिवार के सदस्यों के शरीर में आत्मा का खेल शुरू हो गया. महिला जोर जोर से चिलाने लगी. दृश्य देखकर मरीजों और तीमारदारों में भय का माहौल पैदा हो गया.
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अस्पताल में करीब एक घंटे तक आउटडोर के गेट पर तरह-तरह के टोने-टोटके चलते रहे. लेकिन अस्पताल प्रशासन ने उन्हें टोका तक नहीं. उस वक्त आउटडोर में काफी मरीज मौजूद थे. यह नजारा देख वहां भीड़ भी जमा हो गई. इस टोने-टोटके के चलते आउटडोर में आने वाले मरीजों को काफी परेशानी हुई. कर्मकांड का यह काम पूरा हो जाने के बाद अस्पताल की पुलिस चौकी से हेड कांस्टेबल वंदना शर्मा और कांस्टेबल केशव आए. उन्होंने उनको वहां से हटने को कहा, लेकिन तब तक वे अपने कर्मकांड पूरा कर चुके थे. उसके बाद परिजन कथित आत्मा लेकर वहां से रवाना हो गए.
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