Supreme court On ED: जांच ऐजेंसी ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) अपनी कार्यशैली के कारण इन दिनों सुप्रीम कोर्ट के निशाने पर है। एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट ने जांच ऐजेंसी ईडी को फिर फटकार लगाई है। देश के शीर्ष न्यायालय ने कहा कि ED ठगों की तरह काम कर रही है। उसे कानून की सीमा में रहकर ही कार्रवाई करनी होगी। कोर्ट ने यह टिप्पणी मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम कानून (PMLA) के तहत ED को गिरफ्तारी की शक्ति देने वाले 2022 के फैसले की समीक्षा याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान की।

जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस उज्जल भुइयां और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने कहा कि ED की छवि को लेकर भी चिंता है। जस्टिस भुइयां ने कहा कि पिछले पांच साल में ईडी ने करीब 5 हजार मामले दर्ज किए, लेकिन इनमें सजा की दर 10% से भी कम है।

उन्होंने कहा, ‘आप कानून के दायरे में रहकर काम करें। जब लोग 5-6 साल जेल में रहने के बाद बरी हो जाते हैं, तो इसकी भरपाई कौन करेगा?’ इस पर केंद्र और ईडी की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस वी राजू ने कहा कि प्रभावशाली आरोपी जानबूझकर जांच में देरी करते हैं। दररअसल, जुलाई 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने विजय मदनलाल चौधरी केस में ED की गिरफ्तारी, संपत्ति जब्त करने और तलाशी-जब्ती की शक्तियों को बरकरार रखा था। इस मामले में सांसद कार्ति पी चिदंबरम और अन्य लोगों ने समीक्षा याचिकाएं दायर की थीं।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा- अब समय आ गया कि सख्ती की जाए

जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि PMLA के लिए टाडा और पोटा की तरह अलग कोर्ट बनाई जाएं, जहां रोजाना सुनवाई हो। इससे मामलों का जल्द निपटारा होगा। उन्होंने कहा, ‘प्रभावशाली आरोपी फिर भी याचिकाएं दायर करेंगे, लेकिन उन्हें पता होगा कि अगली ही तारीख पर फैसला हो जाएगा। अब वक्त आ गया है कि ऐसे लोगों पर सख्ती की जाए।

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले 1 साल में ED को 5 बार और फटकार लगाई

12 फरवरीः छत्तीसगढ़ शराब घोटाला मामले में

टिप्पणी- ED की शिकायत पर संज्ञान लेने का आदेश हाईकोर्ट से रद्द हो चुका है, तो आरोपी को जेल में क्यों रहना चाहिए? PMLA की थ्योरी यह नहीं हो सकती कि व्यक्ति जेल में रहेगा ही। संज्ञान रद्द होने के बाद भी व्यक्ति जेल में है, इसे क्या कहा जाना चाहिए। हमने यह भी देखा कि आपने हमें खुद से यह सूचना भी नहीं दी।

5 मईः छत्तीसगढ़ शराब घोटाला मामले में

एजेंसी बिना किसी ठोस सबूत के सिर्फ आरोप लगा रही है। हमने ईडी की कई शिकायतें देखी हैं। यह एक पैटर्न बन गया है, केवल आरोप लगाइए, लेकिन किसी भी साक्ष्य का हवाला मत दीजिए।

22 मईः तमिलनाडु शराब दुकान लाइसेंस मामले में

टिप्पणी- प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने सारी हदें पार कर दी हैं। जब राज्य सरकार की जांच एजेंसी इस मामले में कार्रवाई कर रही है तो ED को हस्तक्षेप करने की जरूरत नहीं है।

21 जुलाईः राजनीतिक लड़ाई चुनाव तक ठीक

राजनीतिक लड़ाइयां चुनाव में लड़ी जानी चाहिए, जांच एजेंसियों के जरिए नहीं। ED का इस तरह इस्तेमाल क्यों हो रहा है? हमारा मुंह मत खुलवाइए। नहीं तो हम ED के बारे में कठोर टिप्पणियां करने के लिए मजबूर हो जाएंगे। मेरे पास महाराष्ट्र का कुछ अनुभव है। आप देशभर में इस हिंसा को मत फैलाइए।

4 अगस्त, 2024ः सरला गुप्ता बनाम ED के मामले पर

टिप्पणीः एजेंसी आरोपी को जांच के दौरान जब्त किए दस्तावेजों नहीं दे रही है। क्या ऐसा होना आरोपी के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं है। ऐसे बहुत ही गंभीर मामले हैं, जिनमें जमानत दी जाती है, लेकिन आजकल मजिस्ट्रेट के केसों में लोगों को जमानत नहीं मिल रही।

वकीलों को समन भेजने पर CJI गवई का कमेंट

सुप्रीम कोर्ट ने 21 जुलाई को कहा था, ‘प्रवर्तन निदेशालय (ED) सारी हदें पार कर रहा है।’ सुप्रीम कोर्ट ने यह बात दो वकीलों को आपराधिक मामलों के आरोपियों को कानूनी सलाह देने के मामले में ईडी के समन पर कही थी।

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