नई दिल्ली। अस्पताल मरीजों के इलाज पर बहुत कम ध्यान देने वाला रियल एस्टेट उद्योग बन गया है. अस्पताल संकट में मरीजों को सहायता प्रदान करने के लिए होते हैं, लेकिन ये व्यापक रूप से महसूस किया जाता है कि वो पैसे कमाने की मशीन बन गए हैं, जो मरीजों को परेशानी को बढ़ाते हैं. यह सख्त टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को गुजरात सरकार के अस्पतालों पर कार्रवाई नहीं करने को लेकर जारी अधिसूचना पर नाराजगी जताते हुए की.

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 2020 में सभी अस्पतालों में नोडल अधिकारी की नियुक्ति का आदेश दिया था और आग से सुरक्षा की प्रोटोकॉल का पालन करने को कहा था. लेकिन कोर्ट के आदेश के खिलाफ गुजरात सरकार की तरफ से नोटिफिकेशन जारी किया गया. इसमें अस्पताल में आग से सुरक्षा के प्रोटोकॉल का उल्लंघन करने वाले अस्पतालों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाने की बात कही गई थी.

जस्टिस शाह ने कहा कि गुजरात में 40 अस्पताल ऐसे थे, जहां अग्नि सुरक्षा का इंतजाम नहीं था और वो हाई कोर्ट पहुंच गए. बाद में अग्नि सुरक्षा का उल्लंघन करने के लिए अस्पतालों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए, ऐसा आदेश सीधे तौर पर सुप्रीम कोर्ट की अवमानना है. इस नोटिफिकेशन के संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार से जवाब मांगा है.

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सुप्रीम कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल से मामले में संज्ञान लेने की बात कहते हुए सवाल किया कि ऐसे कैसे कोई सरकार इस तरह का आदेश दे सकती है कि अस्पतालों के खिलाफ एक्शन ना लिया जाए. वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने कहा कि गुजरात में हमारे परिवार के सदस्य अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति में मौत हुई. गुजरात का ये अस्पताल आवासीय भवनों में शुरू किया गया था. आईसीयू ऐसी जगह था, जहां फायर टेंडर तक पहुंचना असंभव था और आग से सुरक्षा के लिए कोई तंत्र नहीं था.

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