Voter Revision: बिहार में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव को अब कुछ ही महीने शेष रह गए हैं। ऐसे में चुनाव आयोग द्वारा प्रदेश में जोरों-शोर से मतदाता पुनरीक्षण का कार्य चल रहा है। विपक्ष इसके पीछे गरीबों का वोट काटने की साजिश बताते हुए लगातार चुनाव आयोग और सरकार पर हमलावर है। इस बीच आज सुप्रीम कोर्ट में मतदाता पुनरीक्ष को लेकर दायर की गई याचिकाओं पर सुनवाई शुरू हुई। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट आयोग के इस कदम पर बड़ी टिप्पणी की है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि, वोटर लिस्ट रिवीजन जारी रहेगा। संवैधानिक संस्था के काम पर रोक नहीं। हालांकि कोर्ट ने पुनरीक्षण प्रक्रिया में आधार कार्ड, वोटर कार्ड और राशन कार्ड को शामिल करने की बात कही है। अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी।

‘SIR पूरी तरह से मनमाना और भेदभावपूर्ण’

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि, अब जबकि चुनाव कुछ ही महीनों दूर हैं, चुनाव आयोग कह रहा है कि वह 30 दिनों में पूरी मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) करेगा। उन्होंने कहा कि, चुनाव आयोग आधार कार्ड पर विचार नहीं कर रहा और वे माता-पिता के दस्तावेज़ भी मांग रहे हैं। उन्होंने इसे पूरी तरह से मनमाना और भेदभावपूर्ण बताया।

SIR प्रक्रिया में देरी क्यों?

वहीं सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा कि, उसने बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) की प्रक्रिया इतनी देर से क्यों शुरू की? SC ने कहा कि एसआईआर प्रक्रिया में कुछ भी गलत नहीं है, लेकिन इसे आगामी चुनाव से महीनों पहले ही शुरू कर देना चाहिए था।

अभिषेक मनु सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि, पूरा देश आधार कार्ड के पीछे पागल हो रहा है और फिर चुनाव आयोग कहता है कि आधार नहीं लिया जाएगा। सिंघवी का दावा है कि यह पूरी तरह से नागरिकता की जाँच करने की प्रक्रिया है।

सुप्रीम कोर्ट का बड़ा सवाल

सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग के वकील से कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि अदालत के समक्ष जो मुद्दा है वह लोकतंत्र की जड़ और मतदान के अधिकार से जुड़ा है। कोर्ट ने चुनाव आयोग के वकील से कहा कि, याचिकाकर्ता न केवल चुनाव आयोग के मतदान करने के अधिकार को चुनौती दे रहे हैं, बल्कि इसकी प्रक्रिया और समय को भी चुनौती दे रहे हैं।

‘…तो हमारा अस्तित्व ही नहीं’

वहीं, चुनाव आयोग के वकील ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि, चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है, जिसका मतदाताओं से सीधा संबंध है और अगर मतदाता ही नहीं होंगे तो हमारा अस्तित्व ही नहीं है। आयोग किसी को भी मतदाता सूची से बाहर करने का न तो इरादा रखता है और न ही कर सकता है, जब तक कि आयोग को क़ानून के प्रावधानों द्वारा ऐसा करने के लिए बाध्य न किया जाए। हम धर्म, जाति आदि के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकते।

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