Supreme Court Decision On Waqf Amendment Act: वक्फ (संशोधन) कानून की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है। मोदी सरकार द्वारा पारित वक्फ संशोधन कानून रद्द नहीं होगा। हालांकि देश के शीर्ष न्यायालय ने संशोधन अधिनियम 2025 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए कानून के कुछ प्रावधानों पर रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ संशोधन कानून के 3 प्रावधानों पर रोक लगाई है, जिसमें बोर्ड में 3 से ज्यादा गैर-मुस्लिम नहीं होंगे, 5 साल इस्लाम फॉलो करना जरूरी नहीं होगा। साथ ही कलेक्टर संपत्ति सर्वे नहीं करेंगे। विशेषज्ञों के अनुसार, यह फैसला वक्फ संपत्ति और धार्मिक संस्थाओं से जुड़े मामलों में अस्पष्टता और विवाद को कम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

वक्फ (संशोधन) कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने 5 मुख्य याचिकाओं पर ही सुनवाई की। इसमें AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी की याचिका शामिल थी। CJI बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने सुनवाई की। केंद्र की तरफ से सॉलिसिटर जनरल (SG) तुषार मेहता और याचिकाकर्ताओं की तरफ से कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी और राजीव धवन पैरवी कर रहे थे।

इस मामले में याचिका दायर करने वाले वकील अनस तनवीर ने कहा, “सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि कुछ प्रावधानों पर रोक लगाने का प्रारंभिक आधार है। कोर्ट ने पूरे एक्ट या सभी प्रावधानों पर रोक नहीं लगाई, बल्कि कुछ खास प्रावधानों पर रोक लगाई गई है। जैसे- एक प्रावधान जो कहता है कि वक्फ बोर्ड का सदस्य बनने के लिए 5 साल तक मुस्लिम होना जरूरी है, उसे रोक दिया गया है। यह तय करने का कोई तरीका नहीं है कि कोई व्यक्ति पांच साल से मुस्लिम है या नहीं।”

अनस तनवीर ने बताया कि गैर-मुस्लिम सदस्यों के मामले में कोर्ट ने कहा है कि वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों की संख्या 3 से ज्यादा और 4 से कम नहीं हो सकती, जैसा कि सेक्शन 9 में है। उन्होंने यह भी बताया कि रजिस्ट्रेशन के मामलों में कोर्ट ने समय सीमा बढ़ा दी है, लेकिन उस प्रावधान पर रोक नहीं लगाई गई।

इन प्रावधानों पर रोक

  • सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 के उस प्रावधान पर रोक लगा दी है जिसके अनुसार वक्फ बनाने के लिए किसी व्यक्ति को 5 वर्षों तक इस्लाम का अनुयायी होना जरूरी था। यह प्रावधान तब तक स्थगित रहेगा जब तक राज्य सरकारें यह निर्धारित करने के लिए नियम नहीं बना लेतीं हैं कि कोई व्यक्ति इस्लाम का अनुयायी है या नहीं है।
  • न्यायालय ने निर्देश दिया है कि जहां तक संभव हो, वक्फ बोर्ड का मुख्य कार्यकारी अधिकारी एक मुस्लिम होना चाहिए। कोर्ट ने इसको लेकर आदेश नहीं दिया है. बल्कि अपना सुझाव दिया है।
  • इसके साथ ही बोर्ड के कुल 11 सदस्यों में से 3 से ज्यादा गैर-मुस्लिम सदस्य नहीं होंगे। ये भी एक राहत भरा फैसला माना जा रहा है। जबकि काउंसिल में 4 गैर मुस्लिम सदस्यों को रखने की मंजूरी दी है।
  • सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ संपत्तियों के रजिस्ट्रेशन की अनिवार्यता पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है, क्योंकि यह पहलू पहले के कानूनों में भी मौजूद था। न्यायालय ने कहा कि उसने अपने आदेश में इस पहलू पर ध्यान दिया है।
  • सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ किया कि कलेक्टर या कार्यपालिका को संपत्ति के अधिकार तय करने की अनुमति नहीं है। कोर्ट ने कहा कि जब धारा 3(c) के तहत वक्फ संपत्ति पर अंतिम फैसला वक्फ ट्रिब्यूनल और हाई कोर्ट से नहीं हो जाता, तब तक न तो वक्फ को संपत्ति से बेदखल किया जाएगा। इसके साथ ही कोर्ट के फैसले तक राजस्व रिकॉर्ड में भी किसी तरीके की कोई छेड़छाड़ नहीं की जाएगी। यानि अब कलेक्टर के तय करने से ही ये साबित नहीं होगा कि संपत्ति वक्फ है नहीं।

राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद 5 अप्रैल को वक्फ बिल कानून बना

केंद्र ने वक्फ (संशोधन) बिल, 2025 को अप्रैल में अधिसूचित किया था। इसे 5 अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी मिल गई थी। इस बिल को लोकसभा ने 288 सदस्यों के समर्थन से पारित किया, जबकि 232 सांसद इसके खिलाफ थे। नए कानून को लेकर कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद, AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, AAP विधायक अमानतुल्लाह खान, सिविल राइट्स संगठन एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स और जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी अलग-अलग याचिका लगा चुके हैं।

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