
भारत में वसुधैव कुटुम्बकम(Vasudhaiva Kutumbakam) का सिद्धांत यह दर्शाता है कि संपूर्ण विश्व एक परिवार के समान है. फिर भी, वर्तमान में स्थिति यह है कि देश एक व्यक्ति और उसके परिवार के सीमित दायरे में सिमटता जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court ) ने मां और बेटे के बीच संपत्ति विवाद की सुनवाई के दौरान इस पर चिंता व्यक्त की. अदालत ने कहा कि आज के समय में लोग अपने करीबी रिश्तेदारों के साथ भी रहने को तैयार नहीं हैं, जो परिवार व्यवस्था के लिए चिंताजनक है. जस्टिस पंकज मित्तल और एसवीएन भट्टी की बेंच ने 68 वर्षीय समतोला देवी की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें उन्होंने अपने बड़े बेटे कृष्ण कुमार को घर से निकालने की मांग की है.
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अदालत ने इस मामले की सुनवाई के दौरान बिखरते परिवारों की स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त की. न्यायालय ने कहा कि परिवार की परिभाषा धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही है और देश एक व्यक्ति-परिवार की ओर बढ़ रहा है. बेंच ने यह भी उल्लेख किया कि भारत में हम वसुधैव कुटुम्बकम का सिद्धांत अपनाते हैं, लेकिन आज हम अपने ही परिवारों में एकता स्थापित नहीं कर पा रहे हैं, ऐसे में पूरी दुनिया को एक परिवार मानने का विचार कैसे संभव है. सुल्तानपुर में समतोला देवी और उनके दिवंगत पति कल्लूमल के नाम पर एक मकान और तीन दुकानें हैं. उनके तीन बेटे और दो बेटियां हैं, लेकिन सबसे बड़े बेटे कृष्ण कुमार और उनके माता-पिता के बीच विवाद उत्पन्न हो गया. 2014 में कल्लूमल ने अपने बेटे पर आरोप लगाया कि उसने उन्हें गालियां दीं और बदतमीजी की, जिसके बाद वे एसडीएम के पास कार्रवाई के लिए भी गए थे.
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इसके बाद मामला फैमिली कोर्ट में पहुंचा, जहां अदालत ने आदेश दिया कि कृष्ण कुमार और जनार्दन को हर महीने अपने माता-पिता को 8000 रुपये देने होंगे. इसके अतिरिक्त, समतोला देवी और उनके पति ने कृष्ण कुमार को घर से बेदखल करने की मांग की थी, जो मेंटनेंस ऐंड वेलफेयर ऑफ पैरेंट्स ऐंड सीनियर सिटिजंस ऐक्ट के तहत की गई थी. अदालत ने कृष्ण कुमार को यह निर्देश दिया कि वह अपने माता-पिता की अनुमति के बिना घर के किसी हिस्से में अतिक्रमण नहीं कर सकते, लेकिन उन्हें निकालने का आदेश नहीं दिया गया. इस निर्णय से असंतुष्ट माता-पिता ने फिर से केस दायर किया, जिसके परिणामस्वरूप कृष्ण कुमार को निकालने का आदेश जारी हुआ. हालांकि, उच्च न्यायालय ने इस पर स्टे लगा दिया और बाद में फैसले को पलट दिया. उच्च न्यायालय में मामले की सुनवाई के दौरान कल्लूमल का निधन हो गया, जिसके बाद उनकी पत्नी, यानी कृष्ण कुमार की मां, उनके खिलाफ केस लड़ती रहीं.
महिला का कहना था कि यह आवास उनके पति की व्यक्तिगत संपत्ति है, इसलिए कृष्ण कुमार को यहां रहने का कोई अधिकार नहीं है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के निर्णय को बरकरार रखा है. न्यायालय ने स्पष्ट किया कि सीनियर सिटिजंस एक्ट में यह नहीं कहा गया है कि माता-पिता की संपत्ति से बच्चों को बाहर किया जा सकता है. इसके अलावा, न्यायालय ने यह भी उल्लेख किया कि माता-पिता यह साबित नहीं कर पाए कि कृष्ण कुमार ने उनका उत्पीड़न या अपमान किया है. अदालत ने कहा कि यदि कृष्ण कुमार ऐसा करता, तो इस पर विचार किया जा सकता था कि उसे घर से बाहर निकाला जाए.
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