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सुप्रीम कोर्ट ने 21 साल बाद हत्या के आरोपी को बाइज्जत रिहा कर दिया. कोर्ट ने माना कि आरोपी को न्याय मिलने में बहुत देरी हो गई थी. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आरोपी का केस सुप्रीम कोर्ट(Supem-Court) में सिर्फ 13 साल तक पेंडिंग रहा, फिर 11 महीने तक फैसला सुरक्षित रखा गया था. अगस्त 2003 में मोहम्मद बानी आलम माजिद को 16 साल की एक नाबालिग की हत्या और किडनैपिंग के आरोप में गिरफ्तार किया गया था और 2007 में कामरूप सेशन कोर्ट ने उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी.
गुवाहाटी हाई कोर्ट ने भी 2010 में सेशन कोर्ट के फैसले को ही बरकरार रखा. 2011 में माजिद ने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई, जिस पर अगस्त 2011 में पहली बार सुनवाई हुई. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दो साल के बाद जमानत याचिका रिन्यू की जाएगी. 2017 में उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी गई. अक्टूबर 2018 में उन्हें आठ सप्ताह की अंतरिम जमानत मिली, जो उनकी बीमार मां से मिलने के लिए दी गई थी, लेकिन फिर से जेल में लौटना पड़ा.
इस केस में सुप्रीम कोर्ट को 10 साल फैसला लेने में लग गया. 21 मार्च 2024 को बहस समाप्त हुई और फैसला सुरक्षित रखा गया. 24 फरवरी 2025 को जस्टिस अभय एस ओका और उज्ज्वल भुयान की बेंच ने निर्णय दिया कि आरोपी के खिलाफ कोई आरोप साबित ही नहीं हो पाया है, इसलिए उसे बाइज्जत बरी किया जाएगा.
बेंच ने निर्णय देते हुए कहा कि माजिद और पीड़िता विवाहित थे और उनके परिवार को शादी करने का आश्वासन दिया गया था, इसलिए पैसे के लिए यौन उत्पीड़न नहीं हो सकता था. बेंच ने यह भी कहा कि पीड़िता को आखिरी बार देखा गया और उसकी लाश मिलने में काफी समय का गैप था, इसलिए आरोपी के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं थे.
नेशनल जूडिशल डेटा ग्रिड के अनुसार, 81 हजार से अधिक मामले सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं, जिसमें से सिर्फ 55% क्रिमिनल केस एक साल से अधिक समय से पेंडिंग हैं.
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