दिल्ली. खाड़ी देश में काम करने वाले केरल के एक व्यक्ति की 2008 में दुर्घटना में मृत्यु हो गई. इस पर उसके परिवार ने मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण से मुआवजे के रूप में 25 लाख रुपये की मांग की थी. यह मामला सुप्रीम कोर्ट में गया, जहां पर 10 सालों तक चली कानूनी लड़ाई के बाद आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने परिवार के पक्ष में फैसला सुनाया. साथ ही 25 लाख की जगह पर परिवार को 50 लाख रुपये ब्याज के साथ लौटाने का आदेश दिया.
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा कि सर्वोच्च अदालत की ऐसी कोई बाध्यता नहीं है कि वह मुआवजे की जो रकम मांगी गई है उससे अधिक देने का आदेश नहीं दे सकती. मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 168 के प्रभावी होने के वक्त से ही यह मुआवजे आवंटन का काम कर रही है. सुप्रीम कोर्ट को इस रकम को अगर उचित लगे तो बढ़ाने का पूरा अधिकार है. जस्टिस एन वी रामना और मोहन एम शांतानगौदर की एक खंडपीठ ने ‘मुआवजा’ देने का आदेश दिया.
दुर्घटना 10 मई, 2008 को वाडकर में हुई थी, जिसके परिणामस्वरूप इस्माइल की मौत हो गई थी, जो दोहा में अल-रवाबी फूड सेंटर में 2,500 कतर रियाल (करीब 30,000 रुपये) की सैलरी पर काम करता था. उसके परिवार में 22 वर्षीय विधवा और उनके दो बच्चों के अलावा 90 वर्षीय पिता थे. हादसे के बाद परिवार ने एमएसीटी, वडकारा में मुआवजे के तौर पर 25 लाख रुपये देने की मांग की थी.
इस मामले में ट्राइब्यूनल ने मासिक आय का मुआवजे कम करने के उद्देश्य से 12,000 रुपये और मृत व्यक्ति के व्यक्तिगत खर्चों के लिए 50% कटौती की ताकि प्रति वर्ष 7.5% की ब्याज के साथ 11.83 लाख रुपये देने का आदेश दिया था. इसके बाद केरल हाईकोर्ट ने दोहा स्थित फर्म द्वारा जारी वेतन प्रमाण पत्र को ध्यान में रखते हुए मुआवजा बढ़ाकर 21.50 लाख रुपये कर दिया, जिसे भारतीय दूतावास द्वारा विधिवत प्रमाणित किया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने परिवार की दशा को देखते हुए यह रकम बढ़ाकर 28 लाख की और इसमें 8% के सालाना ब्याज को भी जोड़कर देने का आदेश दिया. इस वजह से कुल मुआवजे की रकम 50 लाख तक पहुंच गई.