प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के क्षेत्राधिकार में बढ़ोतरी करते हुए एक महत्वपूर्ण कदम में, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि एक आपराधिक गतिविधि और अपराध की आय का सृजन भ्रष्टाचार के अपराध के मामले में ‘जुड़वां’ की तरह है और ऐसे मामलों में अपराध की आय का अधिग्रहण स्वयं मनी लॉन्ड्रिंग के समान होगा.

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 डबल बेंच ने अपने नए फैसले में कहा है कि रिश्वत लेना मनी लांड्रिंग के तहत एक अपराध है. इस तरह के मामलों में ईडी PMLA के तहत एक्शन ले सकती है. अभी तक करप्शन के मामलों में प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट 1988 की धारा 7 के तहत पब्लिक सर्वेंट के खिलाफ कार्रवाई की जाती है. जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम की बेंच ने तमिलनाडु से जुड़े भ्रष्टाचार के मुद्दे में ये फैसला सुनाया.

जस्टिस रामसुब्रमण्यम ने फैसले में लिखा कि ये पता लगाने के लिए किसी रॉकेट साइंस की जरूरत नहीं है कि अगर कोई पब्लिक सर्वेंट रिश्वत लेता है तो वो अपराध करता है. उसके बाद जस्टिस ने मनी लांड्रिंग के सेक्शन 3 की परिभाषा बताई. उनका कहना था कि इसके तीन हिस्से हैं. पर्सन, प्रोसेस ऑफ एक्टिविटी और प्रोडक्ट. उन्होंने फैसले में लिखा कि पर्सन और प्रोसेस को लेकर कहीं कोई शक नहीं है. लेकिन प्रोडक्ट के लिए सेक्शन 2(1)(U) को समझने की जरूरत है.

रिश्वत लेने के साथ पैसे का इस्तेमाल भी माना जाएगा मनी लांड्रिंग

जस्टिस ने कहा कि सेक्शन 3 में अपराध की छह तरह की आपराधिक गतिविधियां बताई गई हैं. ये कंसीलमेंट, पजेशन, एक्विजिशन, यूज, प्रोजेक्टिंग एज अनटेंटेड मनी, क्लेमिंग एज अन टेंटेड मनी हैं. इसमें तीसरी गतिविधि कुछ भी हासिल करने से जुड़ी है. अगर कोई पब्लिक सर्वेंट रिश्वत की रकम लेता है तो वो तीसरी गतिविधि के तहत आरोपी ठहराया जा सकता है, लिहाजा उसके खिलाफ मनी लांड्रिंग की कार्रवाई शुरू की जा सकती है. अगर वो रिश्वत की रकम को अपने पास नहीं रखकर उसका इस्तेमाल भी करता है तो भी वो मनी लांड्रिंग के तहत आरोपी ठहराया जा सकता है, क्योंकि छह तरह की आपराधिक गतिविधियों में यूज भी शामिल की गई है.