नई दिल्ली। देश भर के मौजूदा और पूर्व सांसदों/विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले चौंकाने वाले आंकड़ों के साथ सामने आए हैं. ये आंकड़े बताते हैं कि राजनीति को अपराध की श्रेणी से बाहर करने की तमाम कोशिशों के बावजूद जिन विधायकों/सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं, उनकी संख्या बढ़ रही है.
इन 16 उच्च न्यायालयों से 12 नवंबर 2022 को प्राप्त आंकड़ों के अनुसार विधायकों और सांसदों के खिलाफ 3069 मामले लंबित हैं. बता दें कि इस समय देश भर में 25 उच्च न्यायालय हैं, जिनमें से 16 उच्च न्यायालयों से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया है, जबकि 9 उच्च न्यायालयों से डेटा प्राप्त नहीं हुआ है.
2018 में तत्कालीन वर्तमान और पूर्व विधायकों के खिलाफ 430 ऐसे संगीन आपराधिक मामले चल रहे थे, जिनमें दोषी पाए जाने पर उन्हें उम्रकैद या मौत की सजा हो सकती थी.
खास बात यह है कि इन 16 हाईकोर्ट में उत्तर प्रदेश और पटना हाईकोर्ट का डेटा शामिल नहीं है। जहां हाल ही में कई सांसदों/विधायकों के खिलाफ गंभीर मामले दर्ज किए गए हैं, लेकिन इन उच्च न्यायालयों ने ताजा आंकड़े नहीं दिए हैं.
सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता और एमिकस क्यूरी विजय हंसारिया द्वारा प्रस्तुत एक रिपोर्ट के माध्यम से यह खुलासा हुआ है. इस रिपोर्ट में उन्होंने उच्च न्यायालयों द्वारा वर्ष 2021 और 2022 में दायर की गई रिपोर्टों के आधार पर कई निष्कर्ष निकाले हैं.
महाराष्ट्र-ओडिशा में ‘ऑनर्स’ के खिलाफ मामलों में देरी
महाराष्ट्र में सबसे अधिक लंबित आपराधिक मामले हैं. 482 सांसदों/विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं, लेकिन अगर सुप्रीम कोर्ट को देश के बाकी 9 हाईकोर्ट का डेटा मिल जाए तो तस्वीर बदल सकती है.
इन 9 उच्च न्यायालयों में उत्तर प्रदेश और बिहार के उच्च न्यायालय शामिल हैं. इन दोनों उच्च न्यायालयों ने अपने सांसदों और विधायकों के खिलाफ पिछले कुछ वर्षों से लंबित आपराधिक मामलों के आंकड़े नहीं दिए हैं.
अगर इन आंकड़ों को विस्तार से देखें तो पता चलता है कि ओडिशा में सांसदों/विधायकों के खिलाफ 454 मामले लंबित हैं. इनमें से 323 ऐसे मामले हैं जो 5 साल से चल रहे हैं. ओडिशा में यह स्थिति तब है, जब सांसदों/विधायकों से जुड़े मामलों से निपटने के लिए 14 विशेष अदालतें बनाई गई हैं.
2018 में 430 गंभीर मामले
सुप्रीम कोर्ट में पेश की गई इस रिपोर्ट के मुताबिक दिसंबर 2018 में तत्कालीन और पूर्व सांसदों/विधायकों के खिलाफ 430 ऐसे मामले चल रहे थे, जिनमें दोषी पाए जाने पर उन्हें उम्रकैद या मौत की सजा हो सकती थी. इनमें से 180 मामले मौजूदा सांसदों और विधायकों के खिलाफ थे, जबकि 250 मामले पूर्व सांसदों और विधायकों के खिलाफ थे.
लंबित मामले बढ़ रहे
दिसंबर 2018 में सांसदों और विधायकों के खिलाफ 4122 मामले लंबित थे. इनमें से 1675 सांसद (पूर्व और वर्तमान) और 2324 विधायक (पूर्व और वर्तमान) हैं.
दिसंबर 2021 में कुल पेंडिंग केस 4984 थे. इसका मतलब यह हुआ कि माननीयों पर केस बढ़ रहे हैं. ऐसी स्थिति तब है जब अक्टूबर 2018 के बाद 2775 मामलों का निस्तारण किया गया.
दिसंबर 2021 में पांच साल से लंबित मामलों की कुल संख्या 1899 थी. नवंबर 2022 के आंकड़े बताते हैं कि 5 साल से अधिक समय से लंबित मामलों की संख्या 962 थी, लेकिन इसमें देश के 9 उच्च न्यायालयों के आंकड़े शामिल नहीं थे.
इन 16 उच्च न्यायालयों से 12 नवंबर 2022 को प्राप्त आंकड़ों के अनुसार विधायकों और सांसदों के खिलाफ 3069 मामले लंबित हैं. यानी यूपी बिहार समेत देश के 9 अन्य हाईकोर्ट के आंकड़े इसमें शामिल नहीं हैं.
एमिकस क्यूरी विजय हंसारिया ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की है कि वह निर्देश जारी करे कि अभियोजन पक्ष और बचाव पक्ष मामले की सुनवाई में सहयोग करेंगे और इन मामलों में कोई स्थगन नहीं दिया जाएगा.
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