नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्र और दिल्ली पुलिस आयुक्त राकेश अस्थाना को उनकी सेवानिवृत्ति से ठीक 3 दिन पहले उनकी नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया है. एनजीओ सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन का प्रतिनिधित्व कर रहे एडवोकेट प्रशांत भूषण ने मामले की सुनवाई के लिए जल्द से जल्द तारीख की मांग की. पीठ के समक्ष सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र का प्रतिनिधित्व किया और वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने अस्थाना का पक्ष रखा.
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NGO ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए एक विशेष अनुमति याचिका दायर की, जिसमें कहा गया कि दिल्ली पुलिस आयुक्त के रूप में अस्थाना की नियुक्ति में कोई अनियमितता नहीं है. संक्षिप्त सुनवाई के बाद शीर्ष अदालत ने पक्षकारों को मामले में जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया. 12 अक्टूबर को मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने कहा था, “निर्णयों के पूर्वोक्त परिपेक्ष्य को ध्यान में रखते हुए समसामयिक एक्सपोसिटियो के सिद्धांत की व्याख्या करते हुए हम प्रतिवादी संख्या 1 (केंद्र) की प्रतिवादी संख्या 2 (अस्थाना) की नियुक्ति के लिए अपनाई गई प्रक्रिया का पालन करने में कोई अनियमितता, अवैधता या दुर्बलता नहीं पाते हैं.”
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अपने 77 पन्नों के फैसले में उच्च न्यायालय ने यह भी फैसला सुनाया कि केंद्र के पास जनहित में अधिकारियों की अंतर-कैडर प्रतिनियुक्ति करने की शक्ति, अधिकार क्षेत्र और अधिकार है और प्रकाश सिंह मामले में पुलिस प्रमुखों की नियुक्ति पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले केंद्र शासित प्रदेशों पर लागू नहीं होंगे. अदालत ने अस्थाना की 31 जुलाई को सेवानिवृत्त होने से ठीक पहले 27 जुलाई को दिल्ली पुलिस आयुक्त के रूप में नियुक्ति के खिलाफ याचिका खारिज कर दी. हमें प्रतिवादी संख्या 2 को अंतर-कैडर प्रतिनियुक्ति देने के निर्णय में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं दिखता है.”
हाईकोर्ट ने कहा था कि याचिकाकर्ता अधिवक्ता सद्रे आलम और अधिवक्ता भूषण के नेतृत्व में एनजीओ सीपीआईएल हस्तक्षेप का आह्वान करने वाला मामला नहीं बना पाए हैं या दूर से यह भी प्रदर्शित नहीं कर पाए हैं कि अस्थाना के सेवा करियर में कोई धब्बा है, जो उसे इस पद के लिए अनुपयुक्त बनाता है.
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