नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट गुरुवार को गुजरात कैडर के आईपीएस अधिकारी राकेश अस्थाना की दिल्ली पुलिस आयुक्त के तौर पर नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार करने के लिए तैयार हो गया. एनजीओ सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ से कहा कि वह सोमवार तक दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए एक विशेष अनुमति याचिका दायर करेंगे, जिसमें कहा गया है कि दिल्ली पुलिस आयुक्त के रूप में अस्थाना की नियुक्ति में कोई अनियमितता नहीं है.
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केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और अस्थाना की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने रिट याचिका के लंबित रहने पर आपत्ति जताते हुए कहा कि इस मुद्दे पर पहले ही उच्च न्यायालय द्वारा फैसला किया जा चुका है. उन्होंने कहा कि अदालत हालांकि, उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार कर सकती है. मामले में संक्षिप्त दलीलें सुनने के बाद शीर्ष अदालत ने मामले को 26 नवंबर को आगे की सुनवाई के लिए पोस्ट किया. पीठ ने भूषण को केंद्र के वकील के साथ-साथ अस्थाना को भी सुनवाई में देरी की किसी भी संभावना से बचने के लिए प्रति देने के लिए कहा.
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12 अक्टूबर को मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने कहा था कि निर्णयों के पहले के परिप्रेक्ष्य को देखते हुए और लगभग एक दशक से अधिक समय से अपनाई गई प्रक्रिया का पालन करते हुए हमें प्रतिवादी संख्या 2 यानी राकेश अस्थाना की नियुक्ति में प्रतिवादी संख्या 1 यानी केंद्र की कार्रवाई में कोई अनियमितता या अवैधता नहीं दिखाई दी है. उच्च न्यायालय ने यह भी फैसला सुनाया कि केंद्र के पास जनहित में अधिकारियों की अंतर-कैडर प्रतिनियुक्ति करने की शक्ति, अधिकार क्षेत्र और अधिकार है और प्रकाश सिंह मामले में पुलिस प्रमुखों की नियुक्ति पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले केंद्र शासित प्रदेशों पर लागू नहीं होंगे.
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अदालत ने अस्थाना की 31 जुलाई को सेवानिवृत्ति से ठीक पहले 27 जुलाई को दिल्ली पुलिस आयुक्त के रूप में नियुक्ति के खिलाफ याचिका को खारिज कर दिया. अपने 77 पन्नों के फैसले में अदालत ने कहा था कि हमें प्रतिवादी संख्या 2 को अंतर-संवर्ग प्रतिनियुक्ति (इंटर-कैडर डेपुटेशन) प्रदान करने के निर्णय में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं दिखता है. उच्च न्यायालय ने कहा था कि याचिकाकर्ता-अधिवक्ता सद्रे आलम और अधिवक्ता भूषण के नेतृत्व में एनजीओ सीपीआईएल हस्तक्षेप का आह्वान करने वाला मामला नहीं बना पाए हैं या वे यह भी प्रदर्शित नहीं कर पाए हैं कि अस्थाना के सेवा करियर में कोई धब्बा है, जो उन्हें पद के लिए अनुपयुक्त बनाता हो.
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