SC On VIP Darshan In Temples: मंदिरों में ‘वीआईपी दर्शन’ और ‘पैसे देकर दर्शन’ की व्यवस्था के दायर याचिका को सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) ने सुनने से किया इंकार कर दिया है। चीफ जस्टिस संजीव खन्ना (Chief Justice Sanjiv Khanna) की अध्यक्षता वाली बेंच ने मामले में कहा कि यह ऐसा मामला नहीं है, जिस पर कोर्ट कोई आदेश जारी करे। हालांकि देश के शीर्ष न्य़ायालय ने साफ किया कि राज्य सरकार इस व्यवस्था को खत्म करने के लिए कदम उठाना चाहे तो ऐसा करने पर कोई रोक नहीं है।
याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि मंदिरों में 400 से 5000 रुपये तक देकर वीआईपी दर्शन की व्यवस्था मिल जाती है, जबकि आम श्रद्धालुओं को लंबी लाइनों में घंटों खड़े रहना पड़ता है। इस तरह की व्यवस्था से कई जगहों पर मंदिर में भगदड़ की घटना भी हो चुकी हैं। ये सरकारों का संवैधानिक दायित्व है कि वह असमानता दूर करने के लिए कदम उठाए।
इस पर सीजेआई जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि आर्टिकल 32 के तहत हम इस पर विचार नहीं करेंगे। हालाँकि हम भी आपकी इस राय से सहमत हो सकते है कि किसी को कोई विशेष वरीयता नहीं दी जानी चाहिए, लेकिन कोर्ट अनुच्छेद 32 के तहत निर्देश जारी नहीं कर सकता।
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दिसंबर में कोर्ट ने याचिका को स्वीकार किया था
दिसंबर में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को विचारणीय कहा था। हालांकि आज चीफ जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की बेंच ने कहा कि वह याचिका में उठाई गई बातों से सहमत हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट इस विषय पर सुनवाई नहीं कर सकता।
याचिकाकर्ता का तर्क और मांग
बता दें कि विजय कुमार गोस्वामी नाम के याचिकाकर्ता ने केंद्र सरकार के संस्कृति और पर्यटन मंत्रालय के अलावा कुल 11 राज्यों- तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, हरियाणा, गुजरात, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, झारखंड और असम को पक्ष बनाया था। याचिकाकाकर्ता ने कहा था कि देश के कई बड़े मंदिरों में 400 से लेकर 5000 रुपए तक के भुगतान पर जल्दी प्रवेश की अनुमति दी जाती है। याचिकाकर्ता ने आशंका जताई थी कि धीरे-धीरे ऐसा दूसरे प्रसिद्ध मंदिरों में भी शुरू हो सकता है।
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याचिका में मांग की गई थी कि सुप्रीम कोर्ट वीआईपी दर्शन व्यवस्था की संवैधानिक समीक्षा करे। सभी मंदिरों में दर्शन को लेकर एक स्टैंडर्ड व्यवस्था बनाई जाए। साथ ही, ऐसे मामलों की निगरानी और श्रद्धालुओं की शिकायत सुनने के लिए एक राष्ट्रीय ओवरसाइट कमेटी बनाई जाए।
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