Supreme Court On Yogi Government: यौन उत्पीड़न (sexual harassment) के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने योगी सरकार को फटकार लगाई है। उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) सरकार को फटकार लगाते हुए और तल्ख टिप्पणी करते हुए सुप्रीम न्यायाधीश ने कहा कि हमारा आदेश मनोरंजन के लिए नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने ये टिुप्पणी यौन उत्पीड़न की नाबालिग पीड़िता के बयान दर्ज करने के अपने आदेश का पालन नहीं करने के संबंध में सुनवाई के दौरान कही।
अभियोजन के अनुसार, आरोपित के विरुद्ध 19 सितंबर, 2023 को मामला दर्ज किया गया था। इससे पहले शीर्ष अदालत ने इस तथ्य पर संज्ञान लेते हुए पीड़िता के 30 जून तक बयान दर्ज करने का आदेश दिया था कि मामले के कई गवाहों की गवाही नहीं हुई है। आरोपित ने दावा किया था कि मामले में किसी भी महत्वपूर्ण गवाह की गवाही नहीं की गई और उसने जमानत की मांग की थी।
जस्टिस सुधांशु धूलिया एवं जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की अवकाशकालीन पीठ यौन अपराधों से बच्चों को संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम के एक मामले की सुनवाई कर रही थी। उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गरिमा प्रसाद से जस्टिस अमानुल्लाह ने कहा, ‘हमारा आदेश अनिवार्य था, इसका अक्षरश: पालन किया जाना था। हम सिर्फ मनोरंजन के लिए आदेश पारित नहीं कर रहे हैं।’
शीर्ष अदालत एक नाबालिग लड़की से दुष्कर्म के आरोपित की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी। चिंतित पीठ ने कहा, ‘हम दिन-प्रतिदिन ऐसा होते देख रहे हैं.. हर राज्य का वकील हमारे आदेशों को लापरवाह तरीके से ले रहा है। यदि यह एक सप्ताह में नहीं किया गया, तो हम आपके गृह सचिव को यहां बुलाएंगे। इन चीजों को होने देने के लिए हम दोषी हैं.. गलती हमारी ओर से है। संदेश (बाहर) जाना चाहिए।’शुरुआत में प्रसाद ने यह कहते हुए स्थगन की मांग की कि पीड़िता के साक्ष्य दर्ज नहीं किए जा सके क्योंकि ट्रायल कोर्ट में शोकसभा थी। पीठ ने कहा कि राज्य की वकील का रुख बेहद लापरवाह है। चूंकि यह अनिवार्य आदेश था, लिहाजा अभियोजन को समय विस्तार के लिए याचिका दाखिल करनी चाहिए।
अदालत में बेहद सावधान रहें
पीठ ने कहा कि अदालत में बेहद सावधान रहें। अब हम इस पर गंभीरता से संज्ञान लेने जा रहे हैं। यह आपका दायित्व था कि समय विस्तार के लिए उचित याचिका दाखिल करतीं।इस मामले में आरोपित के विरुद्ध 16 वर्षीय लड़की के साथ कथित दुष्कर्म (छह माह से अधिक समय तक) और आपराधिक धमकी का मामला दर्ज किया गया है। उसने पिछले वर्ष 30 नवंबर को जमानत याचिका खारिज करने के इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी है।
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