Supreme court On Jaipur Royal Family: जयपुर राजघराने की की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार को नोटिस जारी किया है। जयपुर के ऐतिहासिक टाउन हॉल (पुरानी विधानसभा) को लेकर चल रहे विवाद में शीर्ष न्यायालय ने राजमाता पद्मिनी देवी और अन्य याचिकाकर्ताओं की याचिका पर राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने राजस्थान सरकार से कहा कि जबतक ये मामला लंबित है तब तक कोई कार्रवाई आगे नहीं बढ़ाएगा। इस मामले पर अब दो महीने बाद सुनवाई होगी।

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दरअसल जयपुर के ऐतिहासिक टाउन हॉल (पुरानी विधानसभा) को लेकर चल रहे विवाद में राजस्थान हाईकोर्ट ने इसे सरकारी संपत्ति मानते हुए राजघराने के दावों को खारिज कर दिया था। सके बाद हाईकोर्ट के आदेश को राजपरिवार की सदस्य पद्मिनी देवी, दीया कुमारी और पद्मनाभ सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। इसी मामले में 2 जून (सोमवार) को सुनवाई हुई।

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याचिकाकर्ताओं के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने दलील दी कि यह मामला कानूनी पेचीदगियों से भरा हुआ है। उन्होंने कहा कि इसमें तीन महत्वपूर्ण मुद्दे संविधान के अनुच्छेद 362 और 363 में पूर्व शासकों और रजवाड़ों के विशेषाधिकार से जुड़े हैं। ये विभिन्न प्रकार के कॉन्ट्रैक्ट हैं और आप इन राज्यों का इतिहास जानते हैं। यह एक संधि है जिसमें संघ (Union) तो पक्ष भी नहीं था, यह तो जयपुर और बीकानेर आदि के शासकों के बीच हुई थी।

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‘ऐसे तो पूरा जयपुर आपका हो जाएगा’

इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा तो आप आपस में ऐसा करते हैं, बिना भारत संघ को पक्ष बनाए? आप कैसे विलय करते हैं? फिर तो पूरा जयपुर आपका हो जाएगा। ऐसे तो राजस्थान का हर शासक सभी सरकारी संपत्तियों पर अपना दावा करेगा! तो फिर ये रियासतें कहेंगी कि सारी संपत्तियां उनकी ही हैं। कोर्ट ने कहा कि अगर आप कहते हैं कि भारत संघ इस कॉन्ट्रैक्ट का पक्षकार नहीं था तो अनुच्छेद 363 लागू नहीं होगा।

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वरिष्ठ वकील साल्वे ने कहा कि यह मेरा तर्क नहीं है, अनुच्छेद 363 के तहत बार लागू नहीं होगा। कोर्ट ने कहा कि अगर रोक नहीं लगी तो हर कोई मुकदमा दायर करेगा। वैसे भी हम मुकदमे की वैधता यानी मेरिट पर चर्चा नहीं कर रहे है। हम सिर्फ इस मुद्दे से चिंतित हैं जो आपने उठाया है। इन 4 मुकदमों में भी शायद आधा जयपुर आपका ही होगा. खैर, हम नोटिस जारी करेंगे और हमें दूसरा पक्ष भी सुनना होगा।

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राज्य सरकार ने मांगी मोहलत

राजघराने के पक्षकार साल्वे ने कहा कि हम यथास्थिति चाहते हैं। राज्य के वकील ने जवाब देने के लिए 6 सप्ताह की मोहलत मांगी है और दलील दी कि कोई अंतरिम आदेश पारित नहीं किया जाए। कोर्ट ने नोटिस जारी किया जिसे राज्य के वकील ने स्वीकार कर लिया है। फिर कोर्ट ने कहा कि इस मामले में राज्य एसएलपी के लंबित रहने का सम्मान करेगा और इस मुद्दे में शामिल नहीं होगा।

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क्या है पूरा मामला?

दरअसल, 1949 में महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय और भारत सरकार के बीच हुए समझौते के तहत टाउन हॉल समेत कुछ संपत्तियां सरकारी उपयोग के लिए दी गई थीं। 2022 में गहलोत सरकार के म्यूजियम बनाने के फैसले के बाद शाही परिवार ने आपत्ति जताई। 2014 से 2022 तक कई नोटिस और शिकायतों के बावजूद कोई समाधान नहीं निकला। शाही परिवार ने सिविल कोर्ट में मुकदमा दायर कर संपत्ति पर कब्जा, रोक और मुआवजे की मांग की। राज्य सरकार ने अनुच्छेद 363 का हवाला देकर मुकदमा खारिज करने की मांग की, जिसे ट्रायल कोर्ट ने ठुकरा दिया। लेकिन हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलटते हुए कहा कि ऐसे समझौतों पर दीवानी अदालतों का अधिकार क्षेत्र नहीं है, हालांकि उसने माना कि समझौते के तहत संपत्ति का उपयोग केवल सरकारी कार्यों के लिए होना चाहिए।

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सुप्रीम कोर्ट करेगा जांच

शाही परिवार ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, यह तर्क देते हुए कि अनुच्छेद 363 की व्याख्या सीमित होनी चाहिए और यह उनके संवैधानिक अधिकारों (अनुच्छेद 14, 21, 300A) को रद्द नहीं कर सकता, खासकर 1971 के 26वें संविधान संशोधन के बाद, जब शासकों की मान्यता खत्म कर उन्हें सामान्य नागरिक माना गया।सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले की गहराई से जांच करेगा कि क्या अनुच्छेद 363 पुराने समझौतों पर लागू होता है और क्या शाही परिवार के संपत्ति के अधिकारों का उल्लंघन हुआ है।

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