Supreme Court on Harassment: बेंगलुरु (Bengaluru) के चर्चित 34 वर्षीय AI इंजीनियर अतुल सुभाष (Atul Subhash) सुसाइड केस के बीच सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बड़ी टिप्पणी की है. सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात हाईकोर्ट (Gujarat High Court) के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार करते हुए कहा है कि आत्महत्या के लिए उकसाने के अपराध में किसी को दोषी ठहराने के लिए केवल उत्पीड़न पर्याप्त नहीं है, बल्कि उसे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उकसाने के स्पष्ट सबूत होने चाहिए. न्यायमूर्ति विक्रम नाथ (Vikram Nath) और पी बी वराले (P B Varale) की पीठ ने उस फैसले पर चुनौती देने वाली अपील पर आदेश सुनाते हुए यह टिप्पणी की है जिसमें एक महिला को कथित रूप से परेशान करने और उसे आत्महत्या के लिए मजबूर करने के लिए उसके पति और उसके ससुराल वालों को आरोपमुक्त करने से गुजरात हाईकोर्ट के इंकार कर दिया था.

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ऐसे में 34 वर्षीय AI इंजीनियर अतुल सुभाष सुसाइड केस के मद्देनजर इस फैसले में की गई टिप्पणियां महत्वपूर्ण हो जाती हैं. अतुल सुभाष ने बेंगलुरु में सुसाइड कर लिया. इससे पहले उन्होंने 24 पन्नों का सुसाइड नोट और 90 मिनट का वीडियो शेयर किया था. जिसमें उन्होंने अपनी अलग रह रही पत्नी और उसके परिवार पर उत्पीड़न जैसे गंभीर आरोप लगाए हैं. पुलिस ने अतुल के भाई की शिकायत के आधार पर उनकी पत्नी निकिता सिंघानिया, मां निशा, पिता अनुराग और चाचा सुशील के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया है. ऐसे सुप्रीम कोर्ट का यह टिप्पणी अतुल सुभाष केस में आरोपी निकिता और उसके परिवार के सदस्यों की मदद के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकती है.

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मिली जानकारी के अनुसार गुजरात हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली अपील पर शीर्ष अदालत ने कहा कि 2021 में कथित अपराधों के लिए मामला दर्ज किया गया था, जिसमें धारा 498-ए (विवाहित महिला के साथ क्रूरता करना) और आईपीसी की धारा 306 शामिल है, यह आत्महत्या के लिए उकसाने के अपराध से संबंधित है और इसमें अधिकतम 10 साल की जेल और जुर्माने का प्रावधान है.

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सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई याचिक पर सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने 10 दिसंबर के अपने फैसले में कहा, “आईपीसी की धारा 306 के तहत दोषसिद्धि के लिए यह एक सुस्थापित कानूनी सिद्धांत है कि सुसाइड के लिए उकसाने का इरादा स्पष्ट होना चाहिए. केवल उत्पीड़न किसी को आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं है.”

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कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष को अभियुक्त द्वारा कोई सक्रिय या प्रत्यक्ष सबूत पेश करने चाहिए जिसके कारण मृतक ने अपनी जान ले ली. पीठ ने कहा कि केवल अनुमान नहीं लगाया जा सकता है. इसके लिए कुछ सबूत होना चाहिए. इसके बिना, कानून के तहत उकसावे को स्थापित करने की मूलभूत आवश्यकता पूरी नहीं होती है, जो आत्महत्या के लिए उकसाने के स्पष्ट इरादे स्पष्ट करता हो.” सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने मामले में तीनों लोगों को धारा 306 के तहत दोष मुक्त कर दिया. हालांकि कोर्ट ने आईपीसी की धारा 498-ए के तहत याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आरोप को बरकरार रखा है.

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