Supreme Court Hearing On Waqf Law: वक्फ एक्ट संशोधन ( Waqf Act Amendment) के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में लगातार दूसरे दिन (बुधवार) सुनवाई हुई। दूसरे दिन केंद्र सरकार ने वक्फ कानून पर अपना पक्ष रखा। केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कानून का पक्ष मजबूती से रखा। केंद्र ने कहा कि वक्फ एक इस्लामी अवधारणा है, लेकिन यह इस्लाम का जरूरी हिस्सा नहीं है। केंद्र ने यह भी कहा कि चैरिटी हर धर्म का हिस्सा है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट कहता है कि किसी के भी लिए यह जरूरी नहीं है। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि वक्फ बाय यूजर के मामले में रजिस्ट्रेशन की शर्त हटाने का मतलब होगा ऐसी चीज को अनुमति देना जो शायद पहले दिन से गलत थी।
मंगलवार को याचिकाकर्ताओं की तरफ से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी और राजीव धवन ने दलीलें दीं। मुख्य न्यायाधीश भूषण रामाकृष्ण गवई और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच के सामने एसजी तुषार मेहता ने याचिकाकर्ताओं की उस आपत्ति पर जवाब दिया, जिसमें कहा गया कि नया वक्फ कानून संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 का उल्लंघन करता है।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार एसजी तुषार मेहता ने कहा, ‘जब तक मैंने रिसर्च नहीं की थी तब तक मुझे इस्लाम धर्म के इस हिस्से के बारे में नहीं पता था कि वक्फ इस्लामिक अवधारणा है, लेकिन यह इस्लाम का जरूरी हिस्सा नहीं है। उन्होंने कहा कि चैरिटी का कॉन्सेप्ट हर धर्म में मौजूद है। ईसाई धर्म में भी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट कहता है कि किसी के लिए भी यह जरूरी नहीं है। एसजी तुषार मेहता ने कहा कि हिंदुओं में भी दान देने जैसी चीजें हैं और सिख धर्म में भी ऐसा ही है, लेकिन किसी भी धर्म में इसे जरूरी नहीं बताया गया है।
एसजी मेहता ने कहा कि अगर मान लें कि मुस्लिम समुदाय के ज्यादातर लोगों की फाइनेंशियल स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं है और वह वक्फ नहीं कर पाते हैं, तो क्या वह मुस्लिम नहीं होंगे। यह सुप्रीम कोर्ट की ओर से किया गया एक परीक्षण है, ये निर्धारित करने के लिए कि कोई प्रथा आवश्यक धार्मिक प्रथा है या नहीं. उन्होंने कहा कि किसी भी धर्म में चैरिटी करना जरूरी नहीं है, इसी तरह इस्लाम में वक्फ है।
क्फ एक्ट में संशोधन के लिए 97 लाख लोगों से राय ली गईः केंद्र
इससे पहले एसजी तुषार मेहता ने कहा कि वक्फ एक्ट में संशोधन के लिए हमने 97 लाख लोगों से राय ली है। याचिकाकर्ता पूरे मुस्लिम समुदाय को रिप्रेजेंट नहीं करते हैं। 1923 से 1995 के वक्फ कानून तक व्यवस्था थी कि सिर्फ मुस्लिम ही वक्फ कर सकता था। 2013 में चुनाव से पहले कानून बना दिया गया कि कोई भी वक्फ कर सकता है। एसजी ने बताया कि 25 वक्फ बोर्डों से राय ली गई, जिनमें से कई ने खुद आकर अपनी बातें रखीं। इसके अलावा राज्य सरकारों से भी सलाह-मशविरा किया गया. तुषार मेहता ने बताया कि “संशोधन के हर क्लॉज पर विस्तार से विचार-विमर्श हुआ। कुछ सुझावों को स्वीकार किया गया, जबकि कुछ को नहीं माना गया।
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति बीआर गवई ने सवाल उठाया कि उनका तर्क है कि इस मामले में सरकार अपना दावा खुद तय करेगी? इस पर SG मेहता ने कहा, “यह बात सही है कि सरकार खुद के दावे की पुष्टि नहीं कर सकती। शुरुआती बिल में कहा गया था कि कलेक्टर फैसला करेंगे। आपत्ति यह थी कि कलेक्टर अपने मामले में न्यायाधीश होंगे. इसलिए जेपीसी ने सुझाव दिया कि कलेक्टर के अलावा किसी और को नामित अधिकारी बनाया जाए। उन्होंने स्पष्ट किया कि राजस्व अधिकारी केवल रिकॉर्ड के लिए निर्णय लेते हैं, टाइटल का अंतिम निर्धारण नहीं करते।
SG मेहता ने कहा, “सरकार ज़मीन को सभी नागरिकों के ट्रस्टी के रूप में रखती है। वक्फ उपयोग के आधार पर होता है- यानी वह ज़मीन किसी और की है, लेकिन उपयोगकर्ता ने लम्बे समय तक प्रयोग किया है। ऐसे में जरूरी रूप से यह या तो निजी या सरकारी संपत्ति होती है। अगर कोई भवन सरकारी ज़मीन पर है, तो क्या सरकार यह जांच नहीं कर सकती कि संपत्ति उसकी है या नहीं?” यही प्रावधान धारा 3(C) के अंतर्गत किया गया है।
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