सत्यपाल सिंह राजपूत, रायपुर। छत्तीसगढ़ उच्च शिक्षा विभाग की नई नीति से अनुभव प्राप्त अतिथि व्याख्याता बेरोजगार हो गए हैं. इस पर अतिथि व्याख्याताओं ने हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने उच्च शिक्षा विभाग को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. इसे भी पढ़ें : बच्चों की मौत को लेकर स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी का बड़ा बयान, कहा- टीका लगाने से नहीं बल्कि अन्य वजह से हुई मासूमों की मौत, स्वाइन फ्लू के बढ़ते मरीजों को लेकर कही यह बात

याचिकाकर्ता रजनी अग्रवाल एवं अन्य बनाम छत्तीसगढ़ राज्य एवं अन्य के तहत याचिका में छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के 26/06/2024 के डब्ल्यूपीएस 5232/2023 के आदेश को भी चुनौती दी गई है. शीर्ष न्यायालय में जस्टिस पामिदिघंटम नरसिम्हा एवं जस्टिस संदीप मेहता का कोरम इस मामले में शुक्रवार को निर्धारित था.

पूर्व में हाई कोर्ट ने अंतरिम राहत देते हुए नियमित भर्ती होने तक यथावत सेवा मे रहने का आदेश दिया था. जिसको अतिथि व्याख्याता नीति 2024 के तहत हाई कोर्ट में ही रिट याचिकाओं को निराकृत बताया गया. पुनः सिंगल बेंच में अपने विषय के विरूद्ध जारी विज्ञापनों पर व्याख्याताओं ने स्टे आर्डर के तहत पुनर्नियुक्ति की मांग रखी थी. पालिसी 2024 के 13.2 में जिन व्याख्याताओं को न्यायालय से स्थगन प्राप्त है, उन्हें यथावत रखने की कंडिका के बावजूद विभाग द्वारा सिर्फ श्रेणी 01, 02 एवं 03 के व्याख्याताओं को बिना विज्ञापन यथावत रखा गया है.

वहीं लंबे समय से कार्यरत पीजी प्लेन अतिथि व्याख्याता पद पर बिना सूचना दिए बड़ी संख्या में विज्ञापन निकाला गया, जिससे लगभग हजारों व्याख्याता एकाएक बेरोजगार हो गए. सुप्रीम कोर्ट ने एडवोकेट सीपी मिश्रा के माध्यम से एसएलपी स्वीकार करते हुए उच्च शिक्षा विभाग को नोटिस जारी किया है. पालिसी के कंडिका 13.2 /9.6 एवं यूजीसी मापदंड एवं विनियम के तहत महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय में पढ़ाने की न्यूनतम योग्यता पर प्रश्नचिन्ह लगाया है.

अतिथि व्याख्याता नीति 2024 शुरू से है विवादित!

छत्तीसगढ़ उच्च शिक्षा विभाग द्वारा नई नीति बनाई गई है, जिसमें एक तरफ तो डिग्रीधारकों को यथावत रख लिया गया है, वहीं दूसरी ओर 10-12 वर्षों से अनुभव प्राप्त अतिथि व्याख्याताओं को बिना किसी सूचना के बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. व्याख्याताओं एवं उन पर आश्रित परिवार पर भारी आर्थिक समस्या खड़ी हो गई है.

याचिकाकर्ता अंकुश सिंह सिसोदिया ने कहा कि अगर शासन को उच्च गुणवत्ता वाले शिक्षक चाहिए थे तो सभी अतिथि व्याख्याताओं के पदों पर समान रूप से रिक्तियां जारी करनी थी, लेकिन अनुभव प्राप्त लोगों का हटाया जाना भेदभावपूर्ण है. नीति 2024 शुरू से ही विवादों का सामना कर रही है.

चार-पांच विभागीय स्पष्टीकरण भी इसके संदर्भ में जारी किए गए हैं. जिसमें कभी अनुभव अंक जोड़ने को लेकर तो कभी आयुक्त द्वारा संदिग्ध डिग्रीधारकों के सूक्ष्मतापूर्वक जांच हेतु आदेश जारी होता रहा है. एक ही पद और समान कार्य में दो विभाजन इस नीति में कर दिया गया था जिसमें अतिथि व्याख्याता अलग और अतिथि शिक्षण सहायक अलग माना गया है.

मूलनिवासी प्राथमिकता का भी नहीं मिल रहा लाभ

नीति 2024 की कंडिका 5.4 में छत्तीसगढ़ के “मूलनिवासी अभ्यर्थियों को प्राथमिकता दी जाएगी” वर्णित है. लेकिन प्राथमिकता के अधिकार को अंकों की वरीयता से मापते हुए बड़ी संख्या में आऊटसोर्सिंग को आधार बना दिया गया है. एमपी, यूपी, बिहार, राजस्थान, झारखंड जैसे अन्य राज्यों के अभ्यर्थियों का चयन प्राचार्य द्वारा कर लिया गया है. इससे बड़ी संख्या में अनुभव प्राप्त अभ्यर्थी सेवा से वंचित रह गए हैं.