Supreme Court Hearing On Places Of Worship Act: पूजा स्थलों के संरक्षण कानून-1991 (प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। देश के शीर्ष न्यायालय ने पूजा स्थलों के संरक्षण कानून पर स्टे बरकरार रखा है। अब तीन सदस्यीय बेंच मामले की सुनवाई करेगी। अब ये मामला अप्रैल के पहले सप्ताह में तीन सदस्यीय पीठ के समक्ष सुना जाएगा। कल की सुनवाई में जमीयत उलमा-ए-हिंद (Jamiat Ulama-e-Hind) ने अपना पक्ष रखा।

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सुनवाई के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने पूजा स्थलों के संरक्षण कानून के खिलाफ पांच नई याचिकाएं पेश करने पर कोई नोटिस जारी करने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि किसी भी मामले की एक सीमा होती है, और यह अदालत को तय करनी होती है। हालांकि, नई याचिकाओं को याचिकाकर्ता के रूप में दाखिल करने की अनुमति दी गई है।

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पूर्व चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने स्टे (अस्थायी रोक) को बरकरार रखा था और मामले को तीन सदस्यीय पीठ के पास भेज दिया है। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की बेंच ने कहा-पहले सभी याचिकाओं को एक साथ दाखिल किया जाए, इसके बाद केंद्र सरकार हलफनामा दायर करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को अब तक हलफनामा दाखिल न करने पर नाराजगी भी जताई।

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जमीयत उलमा-ए-हिंद ने रखा अपना पक्ष

सुनवाई के दौरान, जमीयत उलमा-ए-हिंद के वकील एडवोकेट एजाज मकबूल ने अब तक दायर याचिकाओं का सारांश कोर्ट के सामने प्रस्तुत किया, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार किया। जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर संतोष जताते हुए कहा कि स्टे बनाए रखना एक महत्वपूर्ण निर्णय है, क्योंकि इससे सांप्रदायिक ताकतों को उकसाने वाली गतिविधियों को बढ़ावा नहीं मिलेगा।

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कानून खत्म हो गया तो देश में कोई भी मस्जिद, कब्रिस्तान सुरक्षित नहीं रहेगाः मौलाना मदनी

मौलाना मदनी ने कहा-“बाबरी मस्जिद मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को हमने भारी मन से स्वीकार किया था, यह सोचकर कि अब कोई नया विवाद नहीं होगा। लेकिन हमारा ये विश्वास गलत साबित हुआ। अब फिर से सांप्रदायिक ताकतें सक्रिय हो गई हैं और इबादतगाहों को निशाना बनाया जा रहा है।”उन्होंने यह भी कहा कि “अगर पूजा स्थलों के संरक्षण का कानून खत्म हो गया तो देश में कोई भी मस्जिद, कब्रिस्तान, ईदगाह या इमामबाड़ा सुरक्षित नहीं रहेगा। सांप्रदायिक तत्व हर जगह मंदिर होने का दावा कर विवाद खड़ा करेंगे।

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क्या है प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट?
1991 में देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की कांग्रेस सरकार ने पूजा स्थल कानून बनाया। यह कानून कहता है कि 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता है। प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 को नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार राम जन्मभूमि आंदोलन के चरम के दौरान बढ़ते सांप्रदायिक तनाव के बीच लाई थी। यह कांग्रेस के 1991 के चुनावी घोषणापत्र का हिस्सा था।

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तत्कालीन गृह मंत्री एस.बी. चव्हाण ने लोकसभा में इस विधेयक को पेश किया था। विधेयक पेश करते हुए चव्हाण ने कहा था, “मुझे यकीन है कि इस विधेयक का अधिनियमन सांप्रदायिक सद्भाव और सद्भावना को बहाल करने में मदद करने में एक लंबा रास्ता तय करेगा। कांग्रेस सरकार जब इसे लेकर आई तब संसद में बीजेपी ने इसका विरोध किया था। बीजेपी ने इस मामले को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजने की मांग की थी लेकिन इसके बाद भी ये कानून पास हो गया।

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