नई दिल्ली . देश में समलैंगिक विवाह को मंजूरी दी जाए या नहीं, इस मसले पर सर्वोच्च न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ मंगलवार को अपना फैसला सुनाएगी.
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की संविधान पीठ ने 11 मई को सभी पक्षों को सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. पीठ ने हिंदू विवाह अधिनियम, विशेष विवाह अधिनियम और विदेशी विवाह अधिनियम के उन प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिनमें समलैंगिकों को आपस में शादी करने से प्रतिबंधित करता है.
सॉलिसीटर जनरल ने यह भी कहा कि समलैंगिक शादी का मसला इतना सरल नहीं है. सिर्फ स्पेशल मैरिज एक्ट में हल्का बदलाव करने से बात नहीं बनेगी. समलैंगिक शादी को मान्यता देना बहुत सारी कानूनी जटिलताओं को जन्म दे देगा. इससे 160 दूसरे कानून भी प्रभावित होंगे. परिवार और पारिवारिक मुद्दों से जुड़े इन कानूनों में पति के रूप में पुरुष और पत्नी के रूप में स्त्री को जगह दी गई है.
क्या है याचिकाकर्ताओं की दलील
याचिकाकर्ताओं ने दुनिया के कई देशों में समलैंगिक शादी को मान्यता मिलने की दलील दी है. उन्होंने यह भी कहा है कि भारत में समलैंगिक जोड़ों को कोई भी कानूनी अधिकार नहीं है. कानून की नज़र में पति-पत्नी न होने के चलते वह साथ में बैंक अकाउंट नहीं खोल सकते, अपने पीएफ या पेंशन में अपने पार्टनर को नॉमिनी नहीं बना सकते हैं. इन समस्याओं का हल तभी होगा, जब उनके विवाह को कानूनी मान्यता मिल जाएगी.