सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए डिजिटल एक्सेस को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी है. इसके साथ ही, न्यायालय ने एसिड अटैक पीड़ितों और दृष्टिबाधित व्यक्तियों के लिए ‘नो योर कस्टमर’ (KYC) प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश जारी किए. यह निर्णय न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की खंडपीठ ने इस विषय पर दायर की गई 2 जनहित याचिकाओं की सुनवाई के बाद लिया.
कोर्ट ने बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह यह सुनिश्चित करे कि डिजिटल प्रक्रियाएं, विशेषकर KYC जैसी अनिवार्य प्रक्रियाएं, सभी के लिए सुलभ हों. इसमें एसिड अटैक पीड़ित, चेहरे की विकृति वाले लोग और दृष्टिहीन व्यक्ति शामिल हैं. यह अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार), अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 15 (भेदभाव से सुरक्षा) के तहत सुनिश्चित किए गए हैं. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि डिजिटल एक्सेस का अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है.
न्यायमूर्ति जे.बी. परदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने कहा कि केवाईसी प्रक्रियाओं में सुधार की आवश्यकता है, ताकि अक्षम व्यक्तियों, विशेष रूप से तेजाब हमले के शिकारों और दृष्टिबाधितों को कोई कठिनाई न हो. अदालत ने अपने निर्णय में 20 निर्देश जारी किए, जिनमें डिजिटल केवाईसी और ई-केवाईसी प्रक्रियाओं को अधिक समावेशी बनाने के लिए तकनीकी और नीतिगत परिवर्तनों का समावेश है.
KYC में दृष्टिहीन और एसिड अटैक पीड़ितों के लिए बदलाव जरूरी
कोर्ट ने दृष्टिबाधित और अन्य ऐसे नागरिकों के लिए KYC प्रक्रिया में विशेष बदलावों की आवश्यकता पर जोर दिया है, जो सामान्य प्रक्रिया को पूरा नहीं कर पाते. पीठ ने कहा कि विकलांगजनों के लिए KYC प्रक्रिया में सुधार की आवश्यकता को स्वीकार किया गया है और इस संदर्भ में 20 दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं. याचिकाकर्ताओं में एसिड अटैक पीड़ित और दृष्टिहीन लोग शामिल हैं, जिन्होंने चेहरे की विकृति के कारण KYC प्रक्रिया में कठिनाई का सामना किया. डिजिटल युग में, अनुच्छेद 21 की व्याख्या को तकनीकी आवश्यकताओं के अनुसार अनुकूलित करना आवश्यक है, और डिजिटल विभाजन को समाप्त करना अब संवैधानिक दायित्व बन गया है.
याचिकाकर्ता कौन थे?
पहली याचिका वकील और एक्सेसिबिलिटी विशेषज्ञ अमर जैन द्वारा प्रस्तुत की गई, जो स्वयं 100 प्रतिशत दृष्टिहीन हैं. उन्होंने बताया कि उन्हें नियमित रूप से KYC प्रक्रिया में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, जो कि अधिकांश दृष्टिहीन व्यक्तियों के लिए सामान्य समस्या है. उनका तर्क है कि वर्तमान KYC प्रणाली को एक्सेसिबिलिटी के पहलुओं को ध्यान में रखकर नहीं बनाया गया है, जिससे दृष्टिहीन लोग बिना किसी अन्य व्यक्ति की सहायता के इस प्रक्रिया को पूरा नहीं कर सकते.
एक अन्य याचिका एसिड अटैक पीड़िता प्रज्ञा प्रसून द्वारा दायर की गई थी. उन्होंने जुलाई 2023 में ICICI बैंक में खाता खोलने का प्रयास किया, लेकिन बैंक ने डिजिटल KYC प्रक्रिया के तहत ‘लाइव फोटो’ और ‘आंखों को झपकाने’ की आवश्यकताओं के कारण उन्हें अयोग्य ठहराया. याचिका में बताया गया है कि RBI द्वारा निर्धारित KYC प्रक्रिया में ‘लाइवनेस’ साबित करने के लिए ग्राहक को कैमरे के सामने आंखें झपकाना अनिवार्य है. हालांकि, बाद में सोशल मीडिया पर उठे विवाद के चलते बैंक ने प्रज्ञा के मामले में विशेष छूट प्रदान की.
प्रज्ञा की याचिका में यह अनुरोध किया गया है कि केंद्र सरकार को निर्देशित किया जाए कि वह एसिड अटैक पीड़ितों के लिए डिजिटल KYC प्रक्रिया हेतु एक वैकल्पिक प्रणाली विकसित करे. इसके साथ ही, सभी बैंकों और डिजिटल सेवा प्रदाताओं को इन निर्देशों का पालन करने के लिए बाध्य किया जाए.
फैसले का महत्व
यह निर्णय उन लाखों लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण राहत लेकर आया है, जो विकलांगता या चेहरे की विकृति के कारण डिजिटल सेवाओं से वंचित रह जाते थे. सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश न केवल KYC प्रक्रिया में आवश्यक बदलावों की ओर इशारा करता है, बल्कि यह सुनिश्चित करता है कि डिजिटल इंडिया का सपना सभी के लिए समान रूप से सुलभ हो सके.
विस्तृत आदेश का इंतजार
सुप्रीम कोर्ट का विस्तृत निर्णय अभी आना बाकी है, लेकिन अदालत ने संकेत दिए हैं कि इसके दिशा-निर्देश व्यापक प्रभाव डालेंगे और सरकार को इनका पालन सुनिश्चित करना होगा. कानूनी विशेषज्ञों ने इस निर्णय को संवैधानिक अधिकारों की सुरक्षा में एक महत्वपूर्ण कदम माना है. कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि डिजिटल पहुंच को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता देना न केवल तकनीकी समाधान प्रदान करता है, बल्कि यह सामाजिक न्याय को भी बढ़ावा देता है.
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