सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में सोसाइटी फॉर एनलाइटनमेंट एंड वॉलेंटरी एक्शन की याचिका पर फैसला सुनाया, जो देश में बढ़ते बाल विवाह के मामलों से जुड़ा था. कोर्ट ने 10 जुलाई की सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया.

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CJI डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने देश में बाल विवाह की रोकथाम के कानून को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए कई दिशानिर्देश भी जारी किए हैं. इस निर्णय को पढ़ते हुए, चीफ जस्टिस ने कहा कि पर्सनल लॉ से कोई असर नहीं होगा.

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चीफ जस्टिस ने कहा कि बाल विवाह नाबालिगों की स्वतंत्र इच्छा का उल्लंघन हैं. पीठ ने कहा कि अधिकारियों को बाल विवाह की रोकथाम और नाबालिगों की सुरक्षा पर ध्यान देना चाहिए, और उल्लंघनकर्ताओं को अंतिम उपाय के रूप में दंडित करना चाहिए. पीठ ने कहा बाल विवाह निषेध कानून में कुछ खामियां हैं.

2006 के बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम ने 1929 के बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम का स्थान लिया और बाल विवाह को रोकने की कोशिश की.

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सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह पर रोक लगाने के आदेश को लागू करने के लिए सभी विभागों को विशेष प्रशिक्षण की जरूरत है. दंडात्मक उपायों से सफलता नहीं मिलती है, और समाज की स्थिति को समझकर रणनीति बनाएं. संसदीय कमिटी बाल विवाह को पर्सनल लॉ से ऊपर रखने का मसला लंबित है, इसलिए कोर्ट इस पर टिप्पणी नहीं कर रहा है. लेकिन कम उम्र में शादी करना वास्तव में लोगों को अपने पसंद का जीवनसाथी चुनने से वंचित करता है.

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