सुप्रीम कोर्ट में आज (मंगलवार, 6 मई) महाराष्ट्र के स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण से संबंधित मामले की सुनवाई हो रही थी. इस सुनवाई की अध्यक्षता जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह कर रहे थे. इस दौरान, जस्टिस सूर्यकांत ने एक तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि इस देश में आरक्षण एक ऐसे ट्रेन के डिब्बे की तरह बन गया है, जिसमें जो लोग अंदर जाते हैं, वे दूसरों को प्रवेश नहीं करने देना चाहते. जस्टिस सूर्यकांत इस वर्ष के अंत तक देश के 53वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ लेने वाले हैं, जबकि जस्टिस बीआर गवई 14 मई को 52वें CJI के रूप में शपथ लेंगे.

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जस्टिस कांत ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी की कि इस देश में जाति आधारित आरक्षण अब रेलगाड़ी के डिब्बे की तरह बन गया है, जिसमें चढ़ने वाले लोग दूसरों को अंदर आने से रोकना चाहते हैं. इसके साथ ही, पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि महाराष्ट्र के स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण का विवादास्पद मुद्दा 2022 की रिपोर्ट के अनुसार पहले जैसा ही बना रहेगा. अदालत ने महाराष्ट्र राज्य निर्वाचन आयोग को निर्देश दिया है कि वह राज्य में स्थानीय निकाय चुनाव की अधिसूचना 4 सप्ताह के भीतर जारी करे.

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पिछड़ेपन का पता लगाए बिना दिया आरक्षण

वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने याचिकाकर्ता की ओर से तर्क प्रस्तुत किया कि राज्य के बंठिया आयोग ने स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी को आरक्षण प्रदान किया है, बिना यह निर्धारित किए कि वे राजनीतिक रूप से पिछड़े हैं या नहीं. उन्होंने यह भी कहा कि राजनीतिक पिछड़ापन सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन से भिन्न है, इसलिए ओबीसी को अपने आप राजनीतिक रूप से पिछड़ा नहीं माना जा सकता. इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने टिप्पणी की कि इस देश में आरक्षण का मामला रेलवे की तरह हो गया है, जहां जो लोग पहले से लाभान्वित हैं, वे नहीं चाहते कि कोई और इसमें शामिल हो. यही याचिकाकर्ता का भी उद्देश्य है.

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शंकरनारायणन ने टिप्पणी की कि बोगियों की संख्या बढ़ाई जा रही है. इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि जब समावेशिता के सिद्धांत का पालन किया जाता है, तो राज्य को विभिन्न वर्गों की पहचान करने के लिए बाध्य होना चाहिए. यदि सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग मौजूद हैं, तो उन्हें लाभ से वंचित क्यों रखा जाए? यह विशेष रूप से किसी एक परिवार या समूह तक सीमित क्यों होना चाहिए?

चुनाव 4 महीने में संपन्न कराएं

शंकरनारायणन ने बताया कि याचिकाकर्ता भी इसी मुद्दे को उठा रहे हैं. हालांकि, पीठ ने स्पष्ट किया कि महाराष्ट्र में स्थानीय निकायों के चुनावों में ओबीसी आरक्षण के कारण और देरी नहीं की जा सकती. इसके बाद, पीठ ने स्थानीय निकाय चुनावों को चार महीने के भीतर संपन्न कराने के लिए राज्य निर्वाचन आयोग को समयसीमा निर्धारित की. साथ ही, पीठ ने आयोग को यह भी अनुमति दी कि यदि आवश्यक हो, तो वह अधिक समय की मांग कर सकता है.

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पीठ ने स्पष्ट किया कि महाराष्ट्र के स्थानीय निकाय चुनावों के परिणाम शीर्ष अदालत में लंबित याचिकाओं के निर्णयों पर निर्भर करेंगे. शीर्ष अदालत ने 22 अगस्त, 2022 को राज्य निर्वाचन आयोग और महाराष्ट्र सरकार को स्थानीय निकाय चुनाव प्रक्रिया में यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था.