सुप्रीम कोर्ट (Suprem Court) ने महत्वपूर्ण निर्णय में इस बात पर जोर दिया कि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 306 (Section 306) के तहत परिभाषित आत्महत्या के लिए उकसाने के अपराध को व्यक्ति पर आरोप लगाने के लिए अंधाधुंध रूप से लागू नहीं किया जाना चाहिए. शुक्रवार को न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने कानून के दुरुपयोग को रोकने इन संवेदनशील मामलों पर सावधानीपूर्वक विचार करने की जरूरत पर जोर दिया. इंजीनियर अतुल सुभाष (Atul Subhash) की आत्महत्या का मामला काफी चर्चा में था. आत्महत्या से पहले उन्होंने एक लंबा वीडियो रिकॉर्ड किया, जिसमें उन्होंने अपनी पत्नी निकिता सिंघानिया (Nikita Singhaniya) और उनके परिवार को आत्महत्या का कसूरवार बताया था. मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा था, तब कोर्ट ने कहा कि केवल कहने से नहीं चलेगा आत्महत्या करने के लिए मजबूर किया गया है, इसके लिए सबूत चाहिए.
जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने कहा कि ऐसे मामलों में निचली अदालतों और जांच एजेंसियों को आरोप लगाते समय सावधान रहना चाहिए ताकि आरोपियों को जबरन परेशान नहीं किया जाए.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि IPC की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) को सिर्फ पीडित परिवार को शांत करने के लिए नहीं लागू किया जा सकता है. यह भी कहता है कि जांच एजेंसियों को धारा 306 पर निर्णय करते समय सावधान रहना चाहिए ताकि आरोपियों को परेशान नहीं किया जाए और ट्रायल कोर्ट को ऐसे मामलों में आरोप लगाते समय सावधान रहना चाहिए.
अदालत ने कहा. आत्महत्या के लिए उकसाने को साबित करने के मानदंड कड़े हैं. “धारा का इस्तेमाल केवल परेशान परिवार की भावनाओं को शांत करने के लिए नहीं किया जा सकता है और इसे जीवन की रोजमर्रा की वास्तविकताओं से अलग नहीं किया जा सकता है.”
साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया कि वे तथ्यों और सबूतों की गहन जांच किए बिना आत्महत्या के लिए उकसाने के मामलों में आरोप लगाने से बचें. बेंच ने धारा 306 से संबंधित निर्णयों के बारे में जांच एजेंसियों को संवेदनशील बनाने के महत्व पर भी जोर दिया.
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यह मामला बैंक का लोन नहीं चुका पाने वाले व्यक्ति की आत्महत्या से जुड़ा था, जिसमें बैंक मैनेजर के खिलाफ पुलिस ने आत्महत्या के लिए उकसाने के तहत मुकदमा दर्ज किया था. सुप्रीम कोर्ट ने माना कि बैंक मैनेजर की भूमिका आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोपों पर खरी नहीं उतरती है.
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