कांग्रेस के प्रभावशाली वक्ता सुरेंद्र शर्मा को भूपेश बघेल ने कृषक कल्याण परिषद के अध्यक्ष बनाए गए हैं. बलौदाबाज़ार के किसान सुरेंद्र शर्मा दिखने में जितने साधारण हैं, मिलने-जुलने में भी उतने ही सरल और सहज हैं.  बलौदाबाज़ार में किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले सुरेंद्र शर्मा खांटी कांग्रेसी हैं. सुरेंद्र शर्मा कांग्रेस उन चुनिंदा नेताओं में से एक हैं, जो बेहद स्वाभाविक और शानदार वक्ता हैं. उनका लहज़ा और भाषा पर पकड़ शानदार है. उनकी नियुक्ति को कांग्रेस के प्रति उनके समर्पण और विधानसभा चुनाव से पहले हुए ट्रेनिंग कार्यक्रम में उनके योगदान को देखते हुए दिया गया है.

जिस पर सुरेंद्र शर्मा की नियुक्ति की गई है. वो मलाईदार पद नहीं माना जाता. ये ही उनकी चुनौती है और ये ही उनके लिए अवसर है. सुरेंद्र शर्मा का कहना है कि पद मलाईदार न हो लेकिन आज उनके नाम से लोग इस पद को जान रहे हैं जल्द ही उनके काम से लोग कृषक कल्याण परिषद को जानने लगेंगे. उनके पास किसानों को सरकार से जोड़ने और उनकी समस्याओं को सरकार तक पहुंचाने की अहम जिम्मेदारी होगी. माना जा रहा है कि उनके खेती के  अनुभव और समझ का फायदा कृषिमंत्री को मिलेगा. उन्हें सुरेंद्र शर्मा के रुप में मज़बूत हैंड मिला है.

कृषक कल्याण परिषद के अध्यक्ष का पद अब तक मुख्यमंत्री के पास ही होता था. पहली बार मुख्यमंत्री ने किसी और को दिया है. ये पद लोगों के बीच किसान और खेती में उनकी पकड़ को देखते हुए दी गई है. उन्हें 42 साल की राजनीति में पहली बार कोई पद मिला है.  इसके लिए वे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और कृषि मंत्री रविंद्र चौबे का शुक्रिया अदा करते हैं.

जानिए कृषक कल्याण परिषद के अध्यक्ष सुरेंद्र शर्मा की धान की खेती और नरवा-गरुवा-घुरवा अऊ बारी के बारे क्या राय है ?

लल्लूराम डॉट कॉम के राजनीतिक संपादक रुपेश गुप्ता ने उनके पदभार ग्रहण के बाद बातचीत की जिसमें उन्होंने बेखौफ तरीके से अपनी बात रखी.

रुपेश गुप्ता – कृषि मंत्री रविंद्र चौबे ने आपको जब पदभार दिया तब कहा कि आपके पास सरकारी योजनाओं की जानकारियां लोगों तक पहुंचाने की है. इसके अलावा किसानों का फीडबैक भी पहुंचाएंगे. तो क्या आपका काम सेतु का ही रहेगा ?

सुरेंद्र शर्मा –  सबसे पहले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और कृषिमंत्री रविंद्र चौबे का इस दायित्व को सौंपने के लिए आभार. जैसा कि नाम से साफ है कि किसान कल्याण, यानि ऐसी गतिविधियां जिससे किसानों का कल्याण हो और इस सरकार का मुख्य लक्ष्य भी किसानों का कल्याण है. किसानों का कल्याण होगा, उनकी माली हालत में सुधार होगा तो प्रदेश की माली हालत भी सुधरेगी. इस लिहाज़ से देखेंगे तो ये बहुत बड़ी जिम्मेदारी सरकार ने दी है. 40-42 साल हो गए मुझे राजनीति करते हुए. पहली बार सरकार में काम करने का अवसर मिला है. मेरी कई किस्म की परिकल्पनाएं हैं. चूंकि मैं कृषक पृष्ठभूमि का हूं तो मेरी कई परिकल्पनाएं हैं कि मेरे हाथ में आ जाए तो मैं ये कर दूंगा, वो कर दूंगा. मुझे संबंधितों तक बात पहुंचाने का अधिकार तो मिल ही गया है.

रुपेश गुप्ता – आपने कहा कि किसान की हालत सुधरे तो प्रदेश का विकास होगा, आपकी सरकार कहती है भी है कि वो व्यक्ति केंद्रित विकास चाहते हैं. धान के किसानो को आप खूब पैसे दे रहे हैं लेकिन ये भी सच्चाई है कि सिर्फ धान की खेती से किसानों का भला नहीं होने वाला,इसे लेकर आपकी क्या सोच है ?

सुरेंद्र शर्मा- छत्तीसगढ़़ में सबसे बड़ी पूंजी मानव संसाधन है. जिसमें 70 फीसदी युवा है. वो ग्रेजुएट हैं, एमबीए हैं. व्यवासायिक शिक्षा उन्होंने ग्रहण की है. लेकिन उनकी प्रतिभा का इस्तेमाल हम कहां करें. सरकारी नौकरियां निकलती नहीं है, निजी नौकरियों में ऑटोमाइज़ेशन होने से गुंजाइश है नहीं. तो गुंजाइश कहां निकलेगी, कृषि में. धान की खेती 4 महीने रहती है. 8 महीने खेत खाली रहते हैं. इसे बदलने की आवश्यकता है. जब से भूपेश बघेल सत्ता पर काबिज हुए हैं बहुत तरीके के प्रयास हो रहे हैं. आपको मालूम है कि जशपुर में कॉफी उगाने की कोशिश की जा रही है. बस्तर के रागी कोदो कुटकी की बहुत मांग है. औषधीय खेती, मसाले की खेती, दुध उत्पादन, मधुमक्खी पालन, मछली पालन, कोसा और लाख की खेती में काफी संभावनाएं हैं. हमारी सरकार का लक्ष्य है कि नौजवान आधुनिक तरीके से खेती करे. प्रदेश वैकल्पिक खेती की ओर आगे बढ़े.

रुपेश गुप्ता – सरकार अपने कार्यक्रम – ‘नरवा,गरुआ,घुरवा और बारी’ के तहत ऑर्गेनिक खेती की बात करती है. हम ऑर्गेनिक स्टेट की दिशा में कैसे आगे बढ़ सकते हैं ?

सुरेंद्र शर्मा – तमाम वैज्ञानिक कहते हैं कि हम प्रतिदिन 5 माइक्रोग्राम ज़हर का सेवन करते हैं. हम फलो, सब्जियों का सेवन सुधारने के लिए करते हैं लेकिन इनमें पेस्टीसाइट के रुप में ज़हर होता है. अब इनकी गुणवत्ता नकारात्मक हो रही है. फसलों में रासायनिक खादों और दवाइयों का इस्तेमाल सेहत के लिए नुकसानदेह है. तो हमें ऑर्गेनिक खेती की तरफ बढ़ना होगा. किसानों को जब अपने ऑर्गेनिक फसलों की बेहतर कीमत मिलेगी. उन्हें इससे लाभ होगा तो वे आगे बढ़ेंगे. हमें किसान को समझाने की ज़रुरत है कि ऑर्गेनिक खेती में ही भलाई है. हम आम जनता को नहीं जोड़ पाएंगे तो ये बात समझा भी नहीं पाएंगे. जिस तरह आज़ादी की लड़ाई में लोगों को भलाई लगी तो हर गांव में इसके लिए आंदोलन होने लगे.

रुपेश गुप्ता-  आप जितने खांटी नेता हैं उससे ज़्यादा खांटी किसान हैं. छ्त्तीसगढ़ सरकार के फ्लैगशिप कार्यक्रम नरवा-गरवा-घुरवा अऊ बारी के बारे में आपकी निजी राय क्या है. ईमानदारी से बताएगा.

सुरेंद्र शर्मा- देखिए ये परिकल्पना बहुत अच्छी है. इसमें गांव की सभी बुनियादी समस्याओं का समाधान खोजा गया है. लेकिन ये बात किसानों को समझानी होगी कि ये उनके हित में है. खासकर इससे नौजवानों को जोड़ना होगा. जो खेती और पशुपालन को दोयम दर्जे का समझते हैं. उनका आह्वान करना होगा कि इसी में अपनी प्रतिभा का इस्तेमाल करें. इसमें ही बहुत सुखद भविष्य है.

सुरेंद्र शर्मा का राजनीतिक करियर-

मूल रुप से किसान परिवार के आदमी. किसानी पैत्रिक व्यवसाय. 1978 में  पनगांव से मात्र 20 साल की उम्र में सरपंच चुने गए. उसके बाद कांग्रेस में शामिल हुए. वे बाद में किसान राइस मिल बलौदाबाज़ार के अध्यक्ष बने. सन 2005-2010 तक जनपद सदस्य रहे.

इससे पहले 1998-2003 तक अविभाजित रायपुर जिले में बलौदाबाज़ार  ब्लॉक कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे. 2003-2004 तक वे रायपुर जिले के  कार्यकारी अध्यक्ष रहे.

नंदकुमार पटेल के अध्यक्ष बनने के बाद प्रदेश की राजनीति में सक्रिय हुए. 2013 में तात्कालीन प्रदेश अध्यक्ष के साथ परिवर्तन यात्रा में रहे. 56 विधानसभाओं में दौरा किया. दरभा में गोली खाकर उनकी यात्रा थमी.

फिर से 2018 में बड़ी जिम्मेदारी मिली.जब कांग्रेस ने ब्लॉक स्तर पर ट्रेनिंग कार्यक्रम आयोजित किया. इन्हें कार्यकर्ताओं को कांग्रेस के इतिहास और उपब्धियों पर ट्रेनिंग देने की जवाबदेही मिली. इस ट्रेनिंग की कांग्रेस को सत्ता में लाने में अहम भूमिका मानी गई. वे एकमात्र ट्रेनर रहे जो पूरे 90 विधानसभाओं की ट्रेनिंग में मौजूद रहे.

नकारात्मक पहलू

सुरेंद्र शर्मा साफ सुथरी छवि और बेबाक बोलने वाले व्यक्ति हैं. विभाग में रहते हुए उनकी साफगोई अधिकारियों को नागवार गुज़र सकती है. ऐसे लोग कई बार राजनीति में अनफिट हो जाते हैं. वे संगठन में काम करने वाले नेता रहे हैं. सरकार में रहने का अनुभव नहीं है. उन्हें इस अनुभवहीनता से निपटना होगा.