रायपुर. सूर्य 6 माह दक्षिणायन और 6 माह उत्तरायण में भ्रमण करता है. सूर्य के धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश के कारण इसे मकर संक्रांति कहते हैं. मकर संक्राति उत्तरायण काल का प्रारंभिक दिन है. इसलिए इस दिन किया गया दान, पुण्य, अक्षय फलदायी होता है. मकर संक्रांति सूर्य के उत्तरायण में प्रवेश का सूचक है.मकर राशि में सूर्य उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के अंतिम तीन चरण, श्रवण नक्षत्र के चारों चरण और धनिष्ठा नक्षत्र के दो चरणों में भ्रमण करते हैं.
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार उत्तरायण के सूर्य के 6 माहों में देवताओं का एक दिन पूर्ण होता है, ऐसी भी मान्यता है कि सूर्य के उत्तरायण में होने का अर्थ मोक्ष के द्वार खुलना है. भीष्म पितामह शरीर से क्षत-विक्षत होने के बावजूद मृत्यु शैया पर लेटकर प्राण त्यागने के लिए सूर्य के उत्तरायण में प्रवेश का इंतजार कर रहे थे.
संक्रांति व्रत की विधि के अनुसार स्नान से निवृत्ति के पश्चात अक्षत का अष्टदल कमल बनाकर सूर्य की स्थापना कर पूजन करना चाहिए. यह व्रत निराहार, साहार, नक्त या एकमुक्त तरीके से यथाशक्ति किया जा सकता है, जिससे पापों का क्षय हो जाता है और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है. संक्रांति पर देवों और पितरों को कम से कम तिलदान अवश्य करना चाहिए.
सूर्य को साक्षी रखकर यह दान किया जाता है, जो अनेक जन्मों तक सूर्यदेव दान देने वाले को लौटाते रहते हैं. तीन पात्रों में भोजन रखकर- श्यम, रुद्र एवं धर्मश् के निमित्त दान दिया जाता है. अपनी सामर्थ्य के अनुरूप दान करना चाहिए. उत्तरायण काल को प्राचीन ऋषि मुनियों ने पराविद्याओं, जप, तप, सिद्धि प्राप्त करने के लिए महत्त्वपूर्ण माना है. इस अयण में नूतन गृह प्रवेश, दीक्षा ग्रहण, देवता, बाग, कुआँ, बाबडी, तालाब आदि की प्रतिष्ठा, विवाह, चूडाकर्म और यज्ञोंपवीत आदि संस्कार करना शुभ माना जाता है।