रायपुर. स्वर्ण गौरी व्रत श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को किया जाता है. इस व्रत में भगवान शिव तथा पार्वती की पूजा की जाती है. जो स्वर्णगौरी के इस व्रत को करता है, वह भगवान शिव तथा गौरी का अत्यंत प्रिय होता है और विपुल लक्ष्मी प्राप्त करके तथा भूलोक में शत्रु समूह को पराजित करके शिवजी के विशुद्ध लोक को जाता है. यह व्रत मनुष्यों को सभी सम्पदाएँ प्रदान करने वाला है.

श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को प्रातः उठकर सुहागन स्त्रियों को किसी नदी में स्नान करना चाहिए. पूजा स्थान पर देवी पार्वती की भवानी रूप में स्थापित कर उनकी पूजा करनी चाहिए. पूजा करते समय देवी को 16 शृंगार के समान जैसे चूड़ी, बिंदी, सिंदूर, साड़ी, काजल इत्यादि चढ़ाना चाहिए.

प्रात:काल स्नान कर इस व्रत का संकल्प करें. लकडी के पटरे या चौकी यर मिट्टी से शिव पार्वती की मूर्ति बनाकर स्थापित कों. धागे का सोलह तार लेकर उसमें सोलह गाठे लगाकर ग्रंथि बनायें और चौकी के पास स्थापित करें. षोडशोपचार विधि से पूजा करें. पूजा के बाद कथा सुनें और आरती करें. सोलह तारों वाला धागा पुरुष अपने दायें हाथ में बाँधे और स्रियाँ बायें हाथ या गले में बाँधे. बाँस की सोलह छोकरियों में सोलह प्रकार के फल, चावल के कूर्म से बना पकवान तथा वस्त्र आदि रखकर सोलह ब्राह्मण दम्पत्तियों को भोजन कराकर दान कों. दान करते समय कार्य की समृद्धि के लिये प्रण करें. इस प्रकार पूजा और दान करने से लक्ष्मी का वास होता है.