स्वस्तिक केवल शुभ का प्रतीक नहीं, बल्कि ऊर्जा को आकर्षित करने और संतुलित रखने का यंत्र है. पुराने ज़माने की महिलाएं जब आंगन, चौखट या रसोई के कोने में चावल, पीठार या सिंदूर से अल्पना या स्वस्तिक बनाती थीं, तो वे केवल परंपरा का निर्वाह नहीं कर रही थीं, बल्कि घर की ऊर्जा प्रणाली को सक्रिय कर रही थीं. स्वस्तिक का हर भाग जैसे चार भुजाएं और केंद्र बिंदु, चार दिशाओं और पंचतत्वों से जुड़ा होता है.

इसका केंद्र ब्रह्मस्थान होता है. जहां से सकारात्मक ऊर्जा पूरे घर में फैलती है. यह आकृति नेगेटिव ऊर्जा को काटने और प्राण शक्ति को स्थिर करने का एक सूक्ष्म यंत्र मानी जाती है. वहीं अल्पना या मांडना जिन्हें महिलाएं चावल के घोल, गोबर या हल्दी से बनाती थीं, वे घर की ज़मीन पर ऊर्जा ग्रिड की तरह कार्य करती हैं. इन आकृतियों के पीछे तांत्रिक और बीज मंत्रों के रहस्य छिपे हैं, जिन्हें चित्र के रूप में उकेरा जाता था.

आधुनिक विज्ञान इसे मानता है

आधुनिक विज्ञान भी मानता है कि ज्योमेट्रिक डिज़ाइन और रंगों के जरिए मानसिक शांति व ऊर्जा संतुलन संभव है. इसलिए जब कोई महिला दरवाजे पर अल्पना बनाती है, तो वह न सिर्फ त्योहार मना रही होती है, बल्कि अदृश्य शक्ति को आमंत्रित कर रही होती है. आज ये परंपराएं पुरानी समझकर छोड़ी जा रही हैं, जबकि यही वो वैज्ञानिक आध्यात्मिक विधियां हैं, जो घर को मंदिर और जीवन को ऊर्जा केंद्र बनाती थीं.