राजकुमार दुबे, भानुप्रतापपुर. मानवीय संवेदना पर सिस्टम किस कदर हावी होता जा रहा है, इसकी एक बानगी भानुप्रतापपुर में देखने को मिला. यहां 25 दिसंबर को एक 18 वर्षीय छात्रा ने जहर खाकर आत्महत्या कर ली. परिजन मृत हालत में बच्ची को 18 किमी दूर से लेकर भानुप्रतापपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचे, जहां पर डॉक्टरों ने बच्ची को मृत घोषित कर दिया. इसके बाद शव के पोस्टमार्टम के लिए परिजनों को भटकना पड़ा.

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भानुप्रतापपुर स्वास्थ्य केंद्र में ड्यूटी पर तैनात डाक्टर आकांक्षा दरियो ने शव को पोस्टमार्टम के लिए पोस्टमार्टम कक्ष (अस्पताल परिसर से 2 किमी दूर) ले जाने की बात परिजनों से कही. परिजन किराए का वाहन कर शव को लेकर गए और वहां पहुंचते ही डॉक्टर ने कहा कि सीएमएचओ साहब ने कुछ काम बताया है इसलिए पोस्टमार्टम आज नहीं करेंगे, कल करेंगे और बेबस लाचार परिजन शव को उसी वाहन से लेकर वापस अस्पताल परिसर भानुप्रतापपुर पहुंचे.

इस संबंध में लल्लूराम डाॅट काॅम की टीम ने पड़ताल की तो पता चला कि सीएमएचओ साहब ने रतनजोत के बीज खाकर बीमार हुए 7 बच्चों के बारे में जानकारी मांगी थी, जिसे देने ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर ने शव का पोस्टमार्टम न कर जानकारी देना उचित समझा और उसे छोड़ दिया. परिणाम यह हुआ कि इस शव की सुरक्षा में तैनात पुलिसकर्मी के साथ-साथ परिजन जो शव के साथ आए थे वे भी रातभर ठंड में अस्पताल में परेशान होते रहे. उधर बेटी के शव के अंतिम संस्कार के लिए शोक संतप्त परिजन अपने गांव में शव का इंतजार करते रहे.


मुक्तांजलि वाहन की नहीं मिली सुविधा
देर शाम लल्लूराम डाॅट काॅम की टीम ने सीएमएचओ कांकेर से बात की उन्होंने कहा ऐसा कुछ भी नहीं है. यह बात मेरी जानकारी में भी नहीं है. आज सुबह बीएमओ डॉक्टर अखिलेश ध्रुव से पूछा तो उन्होंने कहा कि पोस्टमार्टम रूम में लाइट की उचित व्यवस्था नहीं थी इसलिए शव का पोस्टमार्टम नहीं किया जा सका. अब सवाल यह उठ रहा है कि जब लाइट की उचित व्यवस्था नहीं थी तो डॉक्टर ने शव को वहां ले जाने क्यों कहा. बेबस और गरीब परिजनों के 2000 रुपए वाहन किराए में लग गए, जबकि मृतक के शव को पहुंचाने हर विकासखंड में एक मुक्तांजलि वाहन की व्यवस्था है.

नहीं पहुंचा सरकारी वाहन का ड्राइवर
यदि अस्पताल प्रबंधन संजीदा होता तो वाहन भी उपलब्ध कराता, जिससे गरीबों को आर्थिक नुकसान तो नहीं होता परंतु इस समय ध्यान नहीं दिया गया. सीएमएचओ के निर्देश पर आज सुबह उन्हें शासकीय वाहन तो उपलब्ध कराया गया पर समस्याएं वहां खत्म नहीं हुई, क्योंकि समय पर शव वाहन का चालक नहीं पहुंचा था. आनन-फानन में निजी ड्राइवर को बुलाकर शासकीय एंबुलेंस में शव को रखकर पोस्टमार्टम कक्ष तक पहुंचाया गया.

चाबी नहीं मिलने पर तोड़ना पड़ा शव कक्ष का ताला

शव को पीएम कक्ष से निकालने पहुंचे तो कक्ष में लगे ताले की चाबी गायब थी. किसी तरह बीएमओ की उपस्थिति में ताले को तोड़ा गया. आज दोपहर 12 बजे बालिका के शव का पोस्टमार्टम हो गया और शासकीय वाहन से शव को उनके गृह ग्राम भेज भी दिया गया परंतु यह पूरा वाकया आदिवासी शोक संतप्त परिजनों के लिए किसी विभीषिका से कम नहीं है, क्योंकि आज भी स्वास्थ्य विभाग में सिस्टम मानवीय संवेदनाओं एवम मूल्यों पर हावी है और इसकी सजा इस क्षेत्र के लोगों का भोगना पड़ रहा है.

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