मुंबई. कार्तिक पूर्णिमा को शास्त्रों में पुण्य मास कहा गया है. पुराणों के अनुसार जो फल सामान्य दिनों में एक हजार बार गंगा नदी में स्नान का होता है तथा प्रयाग में कुंभ के दौरान गंगा स्नान का फल होता है, वहीं फल कार्तिक माह में सूर्योदय से पूर्व किसी भी नदी में स्नान कर पूजा करने से प्राप्त हो जाता है.
शास्त्रों के अनुसार, कार्तिक मास स्नान की शुरुआत शरद पूर्णिमा से होती है और इसका समापन कार्तिक पूर्णिमा को होता है. जब अपत्य हिनता, कष्टमय जीवन और दारिद्र, शरीर के न छुटने वाले विकार भुतप्रेत, पिशाच्च बाधा, अपमृत्यू, अपघातों का सिलसिला साथ ही पुर्वजन्म में मिले पितृशाप, प्रेतशाप, मातृशाप, भ्रातृशाप, पत्निशाप, मातुलशाप आदी संकट मनुष्य के सामने निश्चल रुप में खडे हो, इसके अलावा नाग या सर्प की इस जन्म में अथवा पिछले किसी जन्म में हत्या की गयी तो उसका शाप लगता है.
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वात, पित्त, कफ जैसे त्रिदोष, जन्य ज्वर, शुळ, ऊद, गंडमाला, कुष्ट्कंडु, नेत्रकर्णकच्छ आदी सारे रोगों का निवारण करने के लिए और संतती प्राप्ति के लिए साथ ही जीवन में सभी प्रकार के सुख और मोक्ष की प्राप्ति के लिए कार्तिक माह में किए गए प्रयोजन शुभ फल की प्राप्ति देते हैं. इन सभी प्रकार के कर्म के लिए कार्तिक मास के प्रारंभ में स्नान, दान और व्रत पूजा की जाती हैं इस मास में किए गए प्रयास से सभी शापों से मुक्ति मिलती है. अतः कार्तिक मास में पितृशांति, देवशांति या नारायणबली- नागबली का विधान करना चाहिए. ये विधान श्री क्षेत्र अमलेश्वर में भी किया जाता है.
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कार्तिक पूर्णिमा पूजा की विधि
- कार्तिक पूर्णिमा के दिन प्रातः जल्दी उठकर ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करें.
- यदि संभव हो तो पवित्र नदी में स्नान करें. यदि आप नदी में स्नान नहीं कर सकते हैं तो नहाने के पानी में थोड़ा सा गंगाजल मिलाकर स्नान करें.
- यदि संभव हो तो इस दिन आप अन्न का सेवन न करें और फलाहार व्रत का पालन करें.
- उसके बाद लक्ष्मी नारायण की देसी घी का दीपक जलाकर विधि विधान से पूजा करें.
- इस दिन सत्यनारायण की कथा करने से भगवान का आशीर्वाद मिलता है.
- भगवान को इस दिन खीर का भोग अवश्य लगाना चाहिए.
- शाम को लक्ष्मी नारायण की आरती करके तुलसी जी में घी का दीपक जलाना जलाएं और घर के चारों और भी दीप प्रज्वलित करें.
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