रवि साहू, नारायणपुर. छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित अबूझमाड़ के घने जंगलों के बीच बसे तोयमेटा गांव से एक ऐसा वीडियो सामने आया है, जो विकास के दावों की हकीकत को आइना दिखा रहा है। यहां प्राथमिक शाला तोयमेटा के मासूम बच्चे शिक्षा और पेट, दोनों की जरूरतें पूरी करने पांच घंटे पैदल चलकर जंगलों के रास्ते कुतुल बाजार तक पहुंचते हैं। उनका मकसद सिर्फ इतना होता है कि मध्यान भोजन के लिए चावल लाना, ताकि अगले दिन स्कूल में खाना बन सके। यह यात्रा किसी रोमांच नहीं, बल्कि संघर्ष और मजबूरी की कहानी है। बच्चे बताते हैं कि उन्हें नदी, नाला, पहाड़ और घने जंगलों से होकर गुजरना पड़ता है। रास्ते में भालू और अन्य जंगली जानवरों का डर हमेशा बना रहता है, लेकिन विकल्प न होने के कारण यह सफर तय करते हैं।

नारायणपुर जिला मुख्यालय से कुतुल की दूरी लगभग 50 किलोमीटर है। वहीं कुतुल से तोयमेटा पहुंचने में बच्चों को लगभग पांच घंटे का वक्त लगता है। पहाड़ी रास्तों और कच्चे पगडंडियों से होकर गुजरते ये बच्चे कभी समूह में तो कभी अकेले इस कठिन सफर पर निकलते हैं। हाथों और कंधों में चावल की बोरी लिए बच्चों की तस्वीर अबूझमाड़ की शिक्षा व्यवस्था की सच्चाई बया करती है।

कई गांव बिजली, सड़क, पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित

बच्चों का कहना है कि शिक्षक ही उन्हें बाजार से चावल और राशन लाने भेजते हैं, ताकि स्कूल का मध्यान भोजन योजना चालू रह सके। नियमों के मुताबिक राशन स्कूल तक पहुंचाने की जिम्मेदारी शिक्षा विभाग की होती है, परंतु पहुंचविहीन इलाके होने के कारण वाहन नहीं पहुंच रहा। शिक्षकों ने बच्चों को ही बोझ ढोने का जरिया बना दिया है। तोयमेटा और उसके आसपास के गांव आज भी बिजली, सड़क, पानी और नेटवर्क जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित है।

बारिश में कट जाता है कई गांवों का संपर्क

यह इलाका पूरी तरह नक्सल प्रभावित और भौगोलिक रूप से दुर्गम है। बारिश के मौसम में यहां के कई गांवों का संपर्क बाहरी दुनिया से पूरी तरह कट जाता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि कुतुल बाजार के दिन कई हॉस्टल और स्कूलों के बच्चे राशन लेने पहुंचते हैं। कोई दो घंटे, कोई तीन घंटे और कोई पांच घंटे पैदल चलकर आते हैं। यह अबूझमाड़ के बच्चों की त्रासदी है, जिसे आज तक कोई नीतिगत समाधान नहीं मिला।

बीईओ को जांच के निर्देश दिए गए हैं : डीईओ

इस पूरे मामले में जिला शिक्षा अधिकारी (डीईओ) अशोक कुमार पटेल ने कहा, शिक्षकों से संपर्क नहीं हो पा रहा है। मैंने खंड शिक्षा अधिकारी को मामले की जांच के निर्देश दिए हैं। रिपोर्ट मिलने के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी। हालांकि यह जवाब अबूझमाड़ के बच्चों के लिए कोई राहत नहीं लाता, क्योंकि जब तक रिपोर्ट आएगी, तब तक वे बच्चे फिर किसी कंधे पर चावल की बोरी लादे जंगल के रास्ते पैदल ही लौट चुके होंगे।

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