हैदराबाद। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने देश से माओवादियों का सफाया करने के लिए 2026 तक की समय-सीमा तय की है. इस लक्ष्य को हासिल करने सुरक्षाबलों ने छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के कोर एरिया को निशाना बनाया है, ऐसे में पड़ोसी राज्य तेलंगाना को फिर से नक्सली नेताओं के अपना ठिकाना बनाने कोशिशों को लेकर आशंकाएं बढ़ गई हैं.

तेलंगाना पुलिस के सूत्रों ने बताया कि सीपीआई (माओवादी) के मुख्य नेतृत्वकर्ता ज्यादातर तेलंगाना और आंध्र प्रदेश से हैं. इसके 19 केंद्रीय समिति सदस्यों में से 11 तेलंगाना और दो आंध्र प्रदेश से हैं. सूत्रों ने बताया कि अगर केंद्रीय बल अबूझमाड़ में और आगे बढ़ते हैं, तो तेलंगाना उनके लिए शरण पाने का अगला सबसे अच्छा विकल्प बन सकता है.

एक्का-दुक्का मुठभेड़ों, कथित पुलिस मुखबिर की हत्या और सीमावर्ती गांवों में रहने वालों से पैसे ऐंठने के प्रयासों को छोड़कर, तेलंगाना और आंध्र में पिछले एक दशक में माओवादियों द्वारा बहुत कम हिंसा देखी गई है. पिछले महीने, कोठागुडेम में तेलंगाना पुलिस ने छह माओवादियों को मार गिराया था, लेकिन इसे अपवाद के तौर पर देखा गया. हाल के दिनों में विशेष माओवादी विरोधी बल, ग्रेहाउंड और अन्य ने छत्तीसगढ़ सीमा पर चौकसी बढ़ा दी है.

छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा-नारायणपुर की सीमा पर 14 अक्टूबर को हुए हुए ताजा मुठभेड़ में 31 माओवादी मारे गए. इसे नक्सलियों के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है, क्योंकि दलम सदस्यों (पैदल सैनिकों) के बजाय सैन्य अभियानों के उच्च पदस्थ सदस्य मारे गए.

तेलंगाना पुलिस के एक सूत्र ने बताया, “हताहतों की कुल संख्या से किसी अभियान की सफलता तय नहीं होती है. बल्कि मौके से बरामद हथियार बैरोमीटर हैं. गोलीबारी के ताजा दौर में एलएमजी, एके-47 और एसएलआर जैसी राइफलें जब्त की गईं. ऐसे हथियार केवल सैन्य अभियानों में शामिल उच्च पदस्थ कैडर को ही दिए जाते हैं.”

विशेषज्ञों का मानना ​​है कि जब तक केंद्रीय समिति और पोलित ब्यूरो के सदस्यों को निशाना नहीं बनाया जाता, तब तक विद्रोहियों का सफाया करना मुश्किल होगा. कई तो तीन दशकों से भी ज्यादा समय से पकड़ से बाहर हैं. एक विशेषज्ञ ने कहा, “अगर पैदल सैनिक मारे जाते हैं, तो समय के साथ नए सदस्य शामिल होंगे.”