लक्ष्मीकांत बंसोड, डौंडीलोहारा। अब तक तो आपने सिर्फ देवी-देवताओं के ही मंदिर के बारे में सुना होगा, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि हमारे छत्तीसगढ़ में एक ऐसा भी मंदिर है, जिसमें कुत्ते ही पूजा होती है. इस मंदिर को कुकुरदेव मंदिर के नाम से जाना जाता है. खपरी गांव में स्थित इस मंदिर में लोग वफादारी के लिए आस्था के दिपक जलाते हैं.

दरअसल, कुकुर देव मंदिर एक स्मारक है. एक वफादार कुत्ते की याद में इसे बनाया गया था. ऐसी मान्यता है कि सदियों पहले एक बंजारा अपने परिवार के साथ इस गांव में आया था. उसके साथ एक कुत्ता भी था. गांव में एक बार अकाल पड़ गया तो बंजारे ने गांव के साहूकार से कर्ज लिया, लेकिन वो कर्ज वो वापस नहीं कर पाया. ऐसे में उसने अपना वफादार कुत्ता साहूकार के पास गिरवी रख दिया.

चौदहवीं शताब्दी में बने इस मंदिर को 1993 से पुरातत्व विभाग ने अपने अधीन किया है. मंदिर में केवल औपचारिकता मात्र केयर टेकर की व्यवस्था की गई है. लेकिन आज तक उन्हें पर्यटन स्थल का दर्जा नहीं मिल पाया है.

बुजुर्ग बताते हैं कि एक बार साहूकार के यहां चोरी हो गई. चोरों ने सारा माल जमीन के नीचे गाड़ दिया और सोचा कि बाद में उसे निकाल लेंगे, लेकिन कुत्ते को उस लूटे हुए माल के बारे में पता चल गया और वो साहूकार को वहां तक ले गया. कुत्ते की बताई जगह पर साहूकार ने गड्ढा खोदा तो उसे अपना सारा माल मिल गया. कुत्ते की वफादारी से खुश होकर साहूकार ने उसे आजाद कर देने का फैसला लिया. इसके लिए उसने बंजारे के नाम एक चिट्ठी लिखी और कुत्ते के गले में लटकाकार उसे उसके मालिक के पास भेज दिया.

मान्यता है कि उक्त मंदिर में कुत्ते काटने के शिकार व कुकुर खांसी के मरीज स्वस्थ होकर वापस घर लौटते हैं.

इधर कुत्ता जैसे ही बंजारे के पास पहुंचा, उसे लगा कि वो साहूकार के पास से भागकर आया है. इसलिए उसने गुस्से में आकर कुत्ते को पीट-पीटकर मार डाला. हालांकि, बाद में बंजारे ने कुत्ते के गले में लटकी साहूकार की चिट्ठी पढ़ी तो वो हैरान हो गया. उसे अपने किए पर बहुत पछतावा हुआ. उसने उसी जगह कुत्ते को दफना दिया और उस पर स्मारक बनवा दिया. स्मारक को बाद में लोगों ने मंदिर का रूप दे दिया, जिसे आज लोग कुकुर मंदिर के नाम से जानते हैं.