साल 2008 के मालेगांव धमाके के सभी सात आरोपियों को मुंबई की विशेष एनआईए अदालत ने बरी कर दिया है। इन आरोपियों में पूर्व सांसद साध्वी प्रज्ञा, मेजर (रिटायर्ड) रमेश उपाध्याय, सुधाकर चतुर्वेदी, अजय रहीरकर, सुधाकर धर द्विवेदी (शंकराचार्य) और समीर कुलकर्णी शामिल हैं। इस फैसले के बाद अब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देंवेंद्र फडणवीस का बयान सामने आया है. सीएम फडणवीस ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, ”आतंकवाद भगवा न कभी था, न है, न कभी रहेगा!”
वहीं डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे ने भी मालेगांव केस को लेकर एक्स पोस्ट पर प्रतिक्रिया दी. उन्होंने लिखा, ” सत्य कभी असफल नहीं होता: 17 वर्षों की लंबी लड़ाई के बाद, एक विशेष अदालत ने मालेगांव विस्फोटों के सात कथित आरोपियों को बरी कर दिया. यह सच है कि न्याय में देरी हुई, लेकिन यह एक बार फिर साबित हो गया है कि सत्य कभी पराजित नहीं होता.”
उन्होंने लिखा, ”मालेगांव विस्फोट मामले में झूठे आरोपों में जेल में बंद देशभक्तों को शिवसेना ने शुरू से ही अटूट समर्थन दिया था. क्योंकि शिवसेना को कभी संदेह नहीं हुआ कि उसका पक्ष न्याय के पक्ष में है. कर्नल पुरोहित, साध्वी प्रज्ञा और सात अन्य को इस आरोप के कारण भारी मानसिक और शारीरिक यातना सहनी पड़ी है. हिंदू इस अन्याय को कभी नहीं भूलेंगे. एक हिंदू कभी भी राष्ट्र-विरोधी कृत्य नहीं कर सकता, क्योंकि देशभक्ति हिंदुओं का धार्मिक कर्तव्य है. षड्यंत्रकारी कांग्रेसी नेताओं ने ‘हिंदू आतंकवाद’ शब्द गढ़ा. अब इतनी जल्दी में उनके पास इसका क्या जवाब है?”
डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे ने आखिर में लिखा, ”आज एक काला युग समाप्त हो गया. हिंदुओं पर लगा कलंक मिट गया. इसमें कोई शक नहीं कि ‘गर्व से कहो हम हिंदू हैं’ का नारा अब पूरे देश में सौ गुना जोर से गूंजेगा. सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं! जय हिंद, जय महाराष्ट्र.”
क्या है मालेगांव ब्लास्ट केस
9 सितंबर 2008 को मालेगांव में एक मस्जिद के पास मोटर साइकिल में रखे गए बम में विस्फोटक के कारण छह लोगों की मौत हो गई थी और 100 से अधिक लोग घायल हुए थे. इस घटना ने देश में सांप्रदायिक तनाव पैदा किया था. जांच की शुरुआत महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) ने की थी, जिसने इसे भगवा आतंकवाद से जोड़ा, लेकिन बाद में 2011 में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने मामले को संभाला और कई आरोपों को कमजोर माना. गुरुवार को विशेष न्यायाधीश एके लाहोटी ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष ठोस साक्ष्य पेश करने में विफल रहा, जिसके कारण आरोपियों को संदेह का लाभ दिया गया.
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