वीरेन्द्र गहवई, बिलासपुर। उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में मानव तस्करी, बंधुआ मजदूरी और अनुसूचित जनजाति के प्रति अत्याचार के गंभीर आरोपों का सामना कर रहे आरोपी को दोषमुक्त करार दिया है। आरोपी के खिलाफ पर्याप्त साक्ष्यों के अभाव का लाभ मिला है। यह फैसला न्यायमूर्ति संजय के. अग्रवाल एवं न्यायमूर्ति सचिन सिंह राजपूत की खंडपीठ ने सुनाया।

वर्ष 2013 में दरसु राम पर आरोप लगाया गया, कि उसने अपने गांव डूमरपानी थाना बगीचा, जिला जशपुर के कई लोगों अच्छी मजदूरी का झांसा देकर उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़, नरहरपुर और कोलकाता ले जाकर ईंट भट्ठों में जबरन काम करवाया। जहां उन्हें मजदूरी नहीं दी गई, और उन्हें बंधुआ श्रमिक की तरह रखा गया। इन मजदूरों में भिन्सु, चांदनी, भुखनी, कंदरी, अजय राम आदि शामिल थे।

इस मामले में निचली अदालत ने आरोपी को IPC की धारा 370(3), 344, 374 तथा अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 3(1)(vi) के तहत दोषी ठहराया था, और 12 वर्ष तक की कठोर कारावास की सजा सुनाई थी। जिसके खिलाफ उसने हाईकोर्ट में अपील की। जिस पर उच्च न्यायालय में सुनवाई के दौरान पाया, कि आरोपी द्वारा पीड़ितों को उत्तर प्रदेश व कोलकाता ले जाने का तथ्य भले प्रमाणित हो, किंतु मानव तस्करी के लिए “शोषण” का आवश्यक तत्व अभियोजन सिद्ध नहीं कर पाया। न ही पीड़ितों के जबरन बंधक बनाए जाने, शारीरिक या यौन शोषण, जातीय दुर्भावना या धोखे जैसे किसी भी तत्व के ठोस प्रमाण प्रस्तुत किए गए।

पीड़ितों ने यह नहीं कहा कि आरोपी उनकी जाति जानता था, या उन्हें जानबूझकर निशाना बनाया गया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि केवल मजदूरी न मिलना IPC की धारा 370 या SC/ST अधिनियम की धाराओं में सजा देने के लिए के लिए पर्याप्त नहीं है।

कोर्ट ने आरोपी को सभी आरोपों से बरी करते हुए सजा रद्द कर दी। मामले में अधिवक्ता श्रीकांत कौशिक ने आरोपी की ओर से पक्ष रखा। वहीं राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता आर.एस. मरहास के साथ शासकीय अधिवक्ता राहुल तामस्कर एवं भाटिया पैनल लॉयर उपस्थित रहे।