The Batagay Crater: साइबेरिया (Siberia) में मौजूद ‘नरक का द्वार’ लगातार खुलता जा रहा है। इसका आकार किसी स्टिंग रे, हॉर्सशू क्रैब या विशालकाय टैडपोल जैसा दिखता है। वर्ष 1960 के दशक में इसका आकार काफी छोटा था, जो समय के साथ बढ़ रहा है। इसके बढ़ने का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पिछले 30 साल में ही यह तीन गुना बढ़ चुका है। इसका नाम है द बाटागे क्रेटर (The Batagay Crater)। बाटागे क्रेटर को लोग बाटागाइका (Batagaika crater) भी बुलाते हैं। इसका मतलब होता है नरक का द्वार।
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अब यह विशालकाय हो चुका है। इस क्रेटर के अंदर पहाड़ियां और घाटियां बनती जा रही हैं। ये सारा बदलाव सैटेलाइट तस्वीरों में साफ दिखता है। वैज्ञानिक हैरान इस बात से हैं कि यह गड्ढा लगातार बढ़ क्यों रहा है?
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बता दें कि आर्कटिक का इलाका बहुत तेजी से गर्म हो रहा है. जिसकी वजह से वहां पर्माफ्रॉस्ट पिघल रहा है। यह मिट्टी और बर्फ की मोटी परत है, जो हमेशा से जमी हुई थी, लेकिन अब नहीं। बाटागे क्रेटर असल में गड्ढा नहीं है बल्कि यह पर्माफ्रॉस्ट का एक हिस्सा है, जो तेजी से पिघल रहा है. इसे रेट्रोग्रेसिव थॉ स्लंप कहते हैं। ऐसी जगह पर तेजी से भूस्खलन होता है। तीखी घाटियां बन जाती हैं. इसके अलावा गड्ढे बनते हैं।
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आर्कटिक सर्किल में ऐसे थॉ स्लंप बहुत ज्यादा है, लेकिन बेटागे तो मेगास्लंप का खिताब जीत चुका है। वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के जियोफिजिसिस्ट रोजर मिचेल्डिस कहते हैं कि पर्माफ्रॉस्ट फोटोजेनिक जगह नहीं होती।
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इस गड्ढे की स्टडी से धरती का भविष्य पता चलेगा
जियोफिजिसिस्ट रोजर मिचेल्डिस के मुताबिक यह एक जमी हुई धूल वाली जगह है। गीली मिट्टी और बर्फ का भयानक जमावड़ा. जो गर्मी से पिघलता है तो बाटागे क्रेटर की तरह स्लंप बनाता है। यह गड्ढा ऐसा है कि यहां स्टडी करने से हमारी पृथ्वी का भविष्य पता चल सकता है। क्योंकि पर्माफ्रॉस्ट में मरे पौधे, जानवर होते हैं. ये सदियों से जमे हुए होते हैं।
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