रायपुर। 30 जनवरी 1948 की वो शाम जब मोहनदास करमचंद गांधी प्रार्थना के लिए बिरला हाउस की ओर जा रहे थे. सामने मौजूद भीड़ को चीरते हुए बीच से एक युवक आया, बापू का पैर छूआ और जेब से अपनी बैरेटा पिस्टल (सेमी ऑटोमेटिक) निकालकर एक के बाद एक तीन गोली बापू के सीने में दाग दी.

कटघरे में खड़े सभी आरोपी, लाल घेरे में वीर सावरकर

वीर सावरकर भी थे आरोपी

इस मामले में पुलिस ने नाथूराम गोडसे सहित 8 लोगों को आरोपी बनाया था. आरोपियों में वीर सावरकर उर्फ विनायक दामोदर सावरकर, नाथूराम गोडसे, नारायण आप्टे, शंकर किस्तैया, दिगंबर बड़गे, मदनलाल पाहवा, विष्णु रामकृष्ण करकरे और दिगंबर बड़गे शामिल थे.

लालकिले को ट्रायल कोर्ट बनाकर इस मामले का मुकदमा चलाया गया, न्यायाधीश आत्मचरण की अदालत ने नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को न्यायालय ने फांसी की सजा सुनाई. बाकी के पांच आरोपियों विष्णु करकरे, मदनलाल पाहवा, शंकर किस्तैया, गोपाल गोडसे और दत्तारिह परचुरे को न्यायालय ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. बाद में उच्च न्यायालय ने शंकर किस्तैया और दत्तारिह परचुरे को बरी कर दिया. वहीं विनायक दामोदर सावरकर को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था. गोडसे और नारायण आप्टे को 15 नवंबर 1949 को फांसी की सजा सुनाई गई.

दस दिन पहले बम से भी हमला

आपको शायद इस बात की जानकारी नहीं होगी कि हत्या के दिन 30 जनवरी 1948 के पहले भी उनकी हत्या का प्रयास किया गया था.  जिसमें वे बाल-बाल बच गए थे. एक रिपोर्ट के मुताबिक 20 जनवरी 1948 को गांधी जी बिरला हाउस में प्रार्थना कर रहे थे, प्रार्थना सभा में बड़ी संख्या में लोग भी मौजूद थे. उसी दौरान किसी ने बम फेंका, ग्रेनेड पास की ही एक दीवार टूट गई. बम फेंकने वाले व्यक्ति पकड़ा गया. पूछताछ में उसने अपना नाम मदनलाल बताया, पूछताछ में उसने बताया था कि उसके साथ नाथूराम गोडसे के साथ और भी लोग मौजूद थे. गांधी जी के ऊपर हुए इस हमले के बाद 30 पुलिस कर्मियों को बिरला हाउस में तैनात किया गया था.