मुंबई. 200 रुपए रिश्वत लिए जाने के आरोप में 24 साल बाद एक कांस्टेबल को कोर्ट से न्याय मिला है. पूरा मामला महाराष्ट्र का है. यहां कांस्टेबल नागनाथ चावरे पर 200 रुपए रिश्वत लेने का आरोप था. लेकिन अपने आप को बेगुनाह साबित करने के लिए एक लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी, लेकिन इसी बीच उनका निधन हो गया. लेकिन उनकी पत्नी और बेटे ने भी हार नहीं मानी और लड़ाई जारी रखी, जिसका नतीजा ये निकला कि आज वे बेगुनाह साबित हुए.
बॉम्बे हाई कोर्ट ने उनकी अपील स्वीकार करते हुए इनके पक्ष में फैसला सुनाया है.
जानिए इस दिलचस्प मामलें के बारे में
6 नवंबर, 1998 को मोहोल तालुका के वाघोली गांव के बाबूराव शेंडे पर कुछ लोगों ने हमला किया था. मोहोल पुलिस स्टेशन के एक सब-इंस्पेक्टर ने उसे कामती चौकी पर चावरे तक पहुंचाने के लिए एक सीलबंद लिफाफे में एक नोट दिया. जिसके बाद वह 19 नवंबर को चावरे से मिले. चावरे ने उन्हें पत्नी के बयान दर्ज कराने के लिए लाने को कहा, शेंडे ने कहा कि उनके बयान दर्ज होने के बाद, चावरे ने उनके खिलाफ एक मामला दर्ज नहीं करने के लिए 200 रुपए की मांग की. उन्होंने भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो से संपर्क किया और 21 नवंबर को चावरे फंस गए.
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24 साल बाद भी आरोप साबित नहीं कर पाई पुलिस
हाई कोर्ट में 200 रुपए रिश्वत लेने का केस चौबीस साल चला, इन 24 वर्षों में मुंबई पुलिस कॉन्स्टेबल पर रिश्वत लेने का आरोप साबित नहीं कर पाई, न्यायमूर्ति प्रकाश नाइक के बेंच ने फैसला सुनाया. उन्होंने सोलापुर कोर्ट के 31 मार्च, 1998 के आदेश को रद्द कर दिया. बेंच ने कहा कि ‘रिश्वत की मांग पर मुकदमा चलाने का मामला संदेह के घेरे में हैं. सबूतों में विसंगतियों को ध्यान में रखते हुए, आरोपी को संदेह का लाभ मिलता है और वह बरी होने का हकदार है. इस तरह से उसे सभी आरोपों से बरी कर दिया है. फिलहाल चावरें का देहांत हो चुका है, कोर्ट के इस फैसले से परिवार को बड़ी राहत मिली है.
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दो साल की सजा काट चुका था चावरे
चावरे ने अपने बयान में रिश्वत मांगने से इनकार किया था. उन्होंने कहा कि उनके ऊपर दबाव बनाया जा रहा है. एसआई ने दोनों पक्षों के खिलाफ केस करने का निर्देश दिया था. शेंडे ने उससे कहा कि वह उसके खिलाफ केस न करे और उसके जेब में जबरन कुछ डाल दिया, जब वह जेब से वह चीज निकालने लगा तो उसी समय एसीबी पहुंच गई और उन्होंने उसके हाथ में करेंसी नोट सहित दबोच लिया. उनके खिलाफ लोक सेवक के आपराधिक कदाचार और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत रिश्वत लेने का आरोप लगा, कोर्ट ने उन्हें दोनों धाराओं पर 1.5 वर्ष और 1 वर्ष की सजा सुनाई गई थी.
रिश्वत मांगने का तो सवाल ही नहीं
न्यायमूर्ति नाइक ने कहां कि गवाहों के बयान आत्मविश्वास से प्रेरित नहीं है. इनमें गंभीर विसंगतियां है. शिकायतकर्ता इस बात से नाराज था कि उसके खिलाफ काउंटर केस किया गया है. केस की कार्यवाही शुरु नहीं करने के लिए रिश्वत मांगने का सवाल ही नही उठता.
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